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कौन है मनुष्य? उसका जन्म क्यो हुआ? मनुष्य, जीवन और उद्धार पार्ट- 1

धर्म और आध्यात्म आध्यात्म

शरीर (Human Body) के अन्दर जब आत्मा (Aatma) प्रवेश करती है तब ही मनुष्य का जन्म होता है। आसान शब्दो में कहे तो शरीर (Sarir) और आत्मा (Aatma) के मिलने से मनुष्य का जन्म होता है।

शरीर क्या है? Manav Sarir kya hai?

प्रकृति में मौजूद पाँचों तत्व पृथ्वी (Earth), जल (Water), वायु (Air), अग्नि (Fire) और आकाश (Space) के मिलने से हड्डी और मॉस से बने ढॉचे का निर्माण हुआ जिसे शरीर कहते हैं। यह ढाचा नाशवान है और नाश होने के बाद इन्ही पाँच तत्वो में मिल जायेगा।

आत्मा क्या है? Aatma kya hai?

आत्मा एक ऊर्जा (Energy) है। आत्मा को हम एक दीपक का प्रकाश की तरह समझ सकते हैं। इसी ऊर्जा (Energy) में मनुष्य द्वारा जीवन में किये हुए समस्त पाप (Paap) और पुण्य (Punya) का हिसाब किताब होता हैं। आत्मा भौतिक पदार्थ नहीं हैं। इसलिए इसे आँख से नहीं देखा जा सकता, कान से सुना नहीं जा सकता, नाक से सूँघा नहीं जा सकता, जिह्वा से चखा नहीं जा सकता और त्वचा से छुआ नहीं जा सकता। आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है। ये न कभी पैदा होती हैं और न ही कभी मरती हैं, ये सदा रहती हैं। न तो कोई हथियार इसे काट सकता है और न ही आग इसे जला सकती है।

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Aatma or Sarir ka milan

मनुष्य का जन्म क्यो हुआ? Mnusya janam kyo leta hai?

मनुष्य का जन्म आत्मा को और अधिक शक्तिशाली, प्रकाशवान, तेजस्वी बनाकर परम आनन्द में रहने के लिए हुआ। परन्तु समय बदलने के साथ साथ मनुष्य की मानसिकता भी बदलने लगी। मनुष्य शारीरिक सुख को ही वास्तविक सुख समझने लगा और मोह माया के चक्र में फस गया एवं गलत कार्य (कर्म) करने लगा। जिसके परिणाम स्वरूप अब मनुष्य का जन्म दो कारणों से होता है :

  1. आत्मा (Aatma) को और अधिक शक्तिशाली, प्रकाशवान बनाकर परम आनन्द में रहने के लिए।
  2. अपने पूर्व जन्मो के कर्मो को भोगने के लिए।

वैसे मनुष्य जन्म का एक ही लक्ष्य है आत्मा को और अधिक शक्तिशाली, प्रकाशवान बनाकर परम आनन्द की प्राप्ति परन्तु मनुष्य द्वारा किये गलत कर्मो के कारण कुछ नकारात्मक ऊर्जा भी आत्मा के साथ मिल जाती है। इसी नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए भी मनुष्य जन्म लेता है।

जब मनुष्य के कपड़े पुराने और खराब हो जाते है तब वह उन खराब कपड़ो को त्याग कर नये कपड़े पहन लेता है ठीक इसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण कर लेती है। आत्मा द्वारा शरीर छोड़ने को ही मृत्यु कहते है। जिस प्रकार एक कमरे से दीपक निकाल कर दूसरे कमरे मे रख देते है तो पहले कमरे में अंधकार हो जाता हैं और दूसरे कमरे में प्रकाश फैल जाता हैं। आत्मा की उपस्थिति के कारण ही यह शरीर प्रकाशित है, नहीं तो मुर्दा अप्रकाशित और अपवित्र है।

निष्कर्ष- जिसे हम आम बोल चाल की भाषा में “मै” कहते है जैसे मैंने ये किया, मैंने वो किया, मैंने ऐसा किया, मैंने वैसा किया। मैंने इतना बढ़िया काम किया। वो  “मैआत्मा है

 

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