हिन्दू धर्म में सावन के महिने में सोमवार (sawan ke somvar) के दिन व्रत रखना काफी महत्वपूर्ण बताया गया है। सोमवार व्रत नियमित रूप से करने पर भगवान शिव (Shiv) तथा देवी पार्वती (Parvati) की अनुकम्पा बनी रहती है। देवी पार्वती ने सावन के महीने में निराहार व्रत करके महादेव को प्रसन्न करके उनसे विवाह किया था। सावन का महीना शिवजी को विशेष प्रिय है। सावन का महिना जिसमें तीनों लोकों के देवताओं की शक्ति शिव शंकर (shiv Sankar) के हाथों में समा जाती है। इस महिने में शिव के पूजन से हमें समस्त लोकों के देवताओं का आर्शिर्वाद प्रदान होता है।
इस दिन व्रत रहने से संतान सुख, धन, निरोगी काया और मनोवांछित जीवन साथी प्राप्त होता है, साथ ही दाम्पत्य जीवन के दोष और अकाल मृत्यु जैसे संकट दूर हो जाते हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए और विवाहित महिलाएँ सुहाग की सलामती के लिए सावन के सोमवार का व्रत करती है। स्त्री पुरुष सभी को सावन के महीने में शिव की पूजा करने से लाभ होता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार इस दिन व्रत रखने से चंद्र ग्रह के बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है। जिससे जीवन में आ रही बाधाओं को आसानी से दूर किया जा सकता है।
सावन में शिव पूजा कैसे करें
सावन के महिने को साल का सबसे खास महिना कहा जाता है। सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। सावन के सोमवार के व्रत (somvar vrat) वाले दिन सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए। दैनिक कार्यों से निवृत होकर नहा धोकर शुद्ध सफेद रंग के कपडे पहनने चाहिए। भगवान शिव की पूजा यदि घर में करनी हो तो पूजा का स्थान साफ करके गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लेना चाहिए। घर में सिर्फ पारद या नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। सोमवार के व्रत का पूजन करने से पहले भगवान श्री गणेश जी (bhagwan Ganesh) का सर्वप्रथम पूजन करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव जी (bhagwan shiv), माता पार्वती (mata parvati) व नन्दी देव (nandi) की पूजा करनी चाहिए।
बाहर मंदिर में पूजा करने जाना हो तो पूजा का सामान ढक कर ले जाना चाहिए। संभव हो तो मंदिर में भी शुद्ध आसन पर बैठ कर पूजा करनी चाहिए। पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
सावन में शिव पूजा की सामग्री :
सफेद फूल, फूलमाला, अक्षत्, सफेद चंदन, गाय का कच्चा दूध, दही, शहद, घी, चीनी, मोली, पंचामृ्त, वस्त्र, जनेऊ, रोली, बेल-पत्र, चावल, आक-धतूरा, भांग, पान-सुपारी, इत्र केसर, लौंग , इलायची, धूप, दीप, अगरबत्ती कपूर, फल, मिठाई, नारियल, कमल गठ्टा, प्रसाद, मेवा
पूजा विधी (shiv puja vidhi):
- पूजा के लिए सबसे पहले पूजा के सामान को यथास्थान रख दें ।
- अब भगवान शिव का ध्यान करके ताम्बे के बर्तन से शिव लिंग को जल से स्नान कराएँ ।
- गंगा जल से स्नान कराएं।
- इसके बाद दूध , दही , घी , शहद और शक्कर से स्नान कराएँ । इनके मिश्रण से बनने वाले पंचामृत से भी स्नान करा सकते है।
- इसके बाद सुगंध स्नान के लिए केसर के जल से स्नान कराएँ ।
- चन्दन आदि लगाएँ ।
- अब मौली, जनेऊ, वस्त्र आदि चढ़ाएँ।
- अब इत्र और पुष्प माला, बील पत्र आदि चढ़ा दें। बील पत्र 5 ,11 , 21 , 51 आदि शुभ संख्या में लें। बीलपत्र चढाने से रोगों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव की पूजा के समय बेलपत्र का होना सबसे जरूरी माना जाता है। इसका प्रयोग करने से तो भगवान अपने भक्त की मनोकामना बिना कहे ही पूरी कर देते है। बेलपत्र के बारे में कहा जाता है कि जो इंसान बेल के पेड को पानी या गंगाजल से सींचता है, वह समस्त लोकों का सुख भोगकर, शिवलोक को जाता है।
- आंकड़े Akda और धतूरे के फूल चढ़ाएँ । आंकड़ा और धतूरा Dhatoore ke fool चढ़ाने से पुत्र का सुख मिलता है। वाहन सुख के लिए चमेली का फूल chameli ke fool चढ़ाएँ । धन की प्राप्ति के लिए कमल का फूल , शंखपुष्पी या जूही का फूल चढ़ाएँ । विवाह के लिए बेला के फूल चढ़ाएँ । मन की शांति के लिए शेफालिका के फूल चढाने चाहिए। पारिवारिक कलह से मुक्ति के लिए पीला कनेर का फूल चढ़ाएं।
- अब धूप , दीप आदि जलाएँ।
- अब फल मिठाई आदि अर्पित कर भोग लगाएँ।
- इसके बाद पान , नारियल और दक्षिणा चढ़ाएँ।
- इसके पश्चात ऊँ नम: शिवाय मंत्र का 108 जाप करें। फिर शिव चालीसा का पाठ करें।
- अब आरती करें।
- आरती के बाद क्षमा मंत्र बोलें। क्षमा मन्त्र इस प्रकार है :
“आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।।”
श्रद्धा पूर्वक इस प्रकार सावन के सोमवार को पूजा सम्पूर्ण करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर मनोरथ पूर्ण करते है।
इस दिन महामृत्युंजय, शिवसहस्र नाम, रुद्राभिषेक, शिवमहिमा स्रोत, शिवतांडव स्रोत आदि का पाठ करना बहुत लाभकारी होता है।
शिव जी की पूजा करते समय आपकी भावना शुद्ध और सात्विक होनी चाहिए ( जैसे शिव खुद है )। दिनभर उत्तम आचरण करें, मिथ्या न बोलें। शाम के समय शिव पुराण का पाठ करें अैर आरती के बाद प्रसाद ग्रहण कर लें।
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