navgrah puja vidhi

नवग्रह पूजा विधि ॥ नवग्रह पूजन कैसे करें ॥ Navgrah Puja Vidhi

त्यौहार

श्री नवग्रह पूजन विधि ॥ Navgrah Puja Vidhi

किसी भी पूजन कार्य में नवग्रह पूजा का विशेष महत्व है। नवग्रह पूजा हेतु ग्रहों का आवहान करके पहले उनकी स्थापना करें। फिर बाएं हाथ में अक्षत लेकर मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत अर्पित कर नवग्रहों का पूजन करें।

नवग्रह पूजन कैसे करें ? | Navgraha puja kese kare?

ईशान्यां चतुस्त्रिंशदगुलोञ्चसमचतुरस्रस्य ग्रहपीठस्य समीपे सपत्नीको यजमानः उपविश्य आचमनं प्राणायामञ्च कुर्यात् । ततो हस्ते जलं गृहीत्वा मया प्रारब्धस्य अमुककर्मणःसाङ्गता सिद्धयर्थम् अस्मिन् नवग्रहपीठे अधिदेवताप्रत्यधिदेवतापञ्चलोकपालवास्तुक्षेत्रपालदशदिक्पालदेवतासहितानाम् आदित्यादिनवग्रहाणाम् तत्तन्मण्डले स्थापनप्रतिष्ठा पूजनानि करिष्ये । इति संकल्प्य। वामहस्ते अक्षतान् गृहीत्वा दक्षहस्तेन तत्तत्स्थाने आदित्यादिदेवतानाम् आवाहनं कुर्यात् ।।

(बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से प्रत्येक मन्त्र के बाद रेखाङ्कित ग्रहों के स्थान पर अक्षत छोड़ें।)

सूर्य पूजा विधि | Surya Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के मध्य में,  लकडी- मदार,  फल- द्राक्ष )
लाल अक्षत और लाल पुष्प लेकर निम्नलिखित मंत्र से सूर्य का आवाहन करें :

ॐ आकृष्णेन रजमा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च ।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥

जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्यूतिम्।
तमोऽरिं पर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः कलिङ्गदेशोद्भव कश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य: इहागच्छ इह तिष्ठ, ॐ सूर्याय नमः, सूर्यमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : कश्यप गौत्र में उत्पन्न हे सूर्यदेव, आप मेरे शुभ कार्य में पधारकर कल्याण करें।

चन्द्रमा पूजा विधि | Chandra Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के अग्निकोण में,  लकडी- पलास,  फल- गन्ना )
बाएं हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर दाएं हाथ से छोड़ते हुए इस मंत्र से चंद्र का आहवान करें :

ॐ इमं देवा ऽअसपत्क्न गुंग सुवद्ध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय ।
इमममुष्ष्य पुत्रममुख्यै विशऽएष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां गुंग राजा ॥

दधि-शंख-तुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् ।
ज्योत्स्नापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयसगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम! इहा गच्छ इह तिष्ठ, ॐ सोमाय नमः, सोममावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : हे चंद्रदेव रश्मिपति, आप मेरे शुभ कार्य में पधारकर कल्याण करें।

भौम पूजा विधि | Mangal Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के दक्षिण में,  लकडी- खैर,  फल- सोपारी )
रक्तिम पुष्प और अक्षत दाएं हाथ में लेकर बाएं हाथ से छोड़ते हुए इस मंत्र से मंगल देव का आवहान करें :

ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् ।
अपा गुंग रेता गुंग सि जिन्वति ॥

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्तेजसम-प्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिकापुरोद्भव भरद्वाजसगोत्र रक्तवर्ण भो भौम! इहागच्छ इह तिष्ठ, ॐ भौमाय नमः, भौममावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : विद्द्युत समान तेजस्वी भूमिपुत्र हे मंगलदेव , आप मेरे शुभ कार्य में पधारकर कल्याण करें।

बुध पूजा विधि | Budh Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के ईशान कोण में,  लकडी- चिचडी,  फल- नारंगी )
पीत व हरित अक्षत दाएं हाथ में लेकर बाएं हाथ से छोड़ते हुए इस मंत्र से मंगल देवता का आवाहन करें :

ॐ उबुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते स गुंग सृजेथा मयं च ।
अस्मिन्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत ॥

प्रियङ्गुकलिकाभासं रूपेणाऽप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयसगोत्र हरितवर्ण भो बुध! इहागच्छ, इहतिष्ठ, ॐ बुधाय नमः, बुधमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : हे सौम्य बुधदेव ! आप पूजन में पधारकर स्थापित हों और मुझे निर्भय करें ।

बृहस्पति पूजा विधि | Guru Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के उत्तर मे,  लकडी – पीपल,  फल- निम्बू )
अष्टदल से अंकित बृहस्पति का आह्वान पीले रंग से रंगे अक्षत और पुष्प अर्पित कर करें :

ॐ बृहस्पतेऽअति यदर्योऽअर्हाद्युमद्विभाति क्क्रतुमज्जनेषु ।
यद्दीदयच्छवसऽऋतप्रजात तदस्ममासु द्रविणं धेहि चित्रम् ॥

देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चन सन्निभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्य ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो बृहस्पते । इहागच्छ इहतिष्ठ, ॐ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : हे देवगुरु बृहस्पति , आप पूजन कार्य में पधारे ।

शुक्र पूजा विधि | Sukra Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के पूर्व में, लकडी – गूलर, फल- बीजोरू)
दैत्य गुरु शुक्र भगवान का आह्वान करने के लिए श्वेत फूल और अक्षत देवता को अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :

ॐ अन्नात्परिसुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः ।
ऋतेन सत्त्यमिन्द्रियं विपान गुंग शुक्क्रमन्धस ऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ॥

हिमकुन्द – मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं शुक्रमावाहयाम्यहम्॥

ॐ भूर्भुवः स्वःभोजकटदेशोद्भव भार्गवसगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ शुक्राय नमः, शुक्रमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : हे दैत्याचार्य शुक्रेव , आप पूजन कार्य में पधारे।

शनि पूजा विधि | Shani Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के पश्चिम में, लकडी – शमी, फल- कमलगट्टा )
सूर्य पुत्र शनि का आह्वान करने के लिए काले रंग से रंगे अक्षत और काले फूल समर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :

ॐ शं नो देवीरभिष्टय ऽआपो भवन्तु पीतये ।
शय्योरभिस्रवन्तु नः ॥

नीलाम्बुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छाया मार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपसगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर! इहागच्छ इहतिष्ठ, ॐ शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : हे सूर्यपुत्र शनिदेव ! कृपा करके आप शुभ पूजन में पधारे और पूजन कार्य के पूर्ण करें।

राहु पूजा विधि | Rahu Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के नैर्ऋत्य कोण में, लकडी – दुव, फल- नारियल )
राहू का आह्वान करने के लिए काले रंग से रंगे अक्षत और काले फूल समर्पित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें :

ॐ कयानश्श्चित्रऽआभुवदूती सदावृधः सखा ।
कयाशचिष्ठ्या वृता ॥

अर्द्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसम्भूतं राहुमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनापुरोद्भव पैठिनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो! इहा गच्छ इह तिष्ठ राहवे नमः, राहुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भवार्थ : हे अर्धकाय राहु ! आप पूजन में पधारकर इसे सफल करें।

केतु पूजा विधि | Ketu Puja Vidhi

( स्थान- मण्डल के वायव्य कोण में, लकडी – कुशा, फल- बाडिम )
केतु का आह्वान करने के लिए धूमिल अक्षत और फूल लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें :

ॐ केतुं कृण्ण्वन्नकेतवे पेशो मर्याऽअपेशसे ।
समुषद्भिरजायथाः ॥

पलाशधूप्रसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिसगोत्र कृष्णवर्ण भो केतो! इहागच्छ इह तिष्ठ, ॐ केतवे नमः, केतुमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि ।

भावार्थ : हे रौद्ररूप – धूम्रवर्ण केतु, आप पूजन में पधारकर ऐसे सफल करें।

 

नवग्रह : नवग्रहों के आह्वान और स्थापना के बाद हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र उच्चारित करते हुए नवग्रह मंडल में प्रतिष्ठा के लिए अर्पित करें।

ॐ मनो जूर्तिर्ज्षतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं ततनोत्वरिष्टं यज्ञगुँ सममं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो3म्प्रतिष्ठा ॥

निम्न मंत्र से नवग्रहों का आह्वान करके उनकी पूजा करें :

अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहादेवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।

प्रार्थना

ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु॥
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मंगलं मंगलः सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्र सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्यो नतिं नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनकूला ग्रहाः ॥

इस प्रकार नवग्रहों को शुभ कार्य की सफलता हेतु आव्हान एवं प्रतिष्ठा करने के पश्चात्‌ पूजन प्रारंभ होता है।

।। इति नवग्रह पूजनम् | Navgrah Puja Vidhi End।। 

 

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15 thoughts on “नवग्रह पूजा विधि ॥ नवग्रह पूजन कैसे करें ॥ Navgrah Puja Vidhi

  1. क्या नवग्रह की कृपा पाने के लिए हमें नवग्रह कवच पाठ करना चाहिए ? क्या कवच से पहले चालीसा और स्त्रोत भी करना चाहिए या खली कवच कर ले ?

  2. 🙏🌹🙏🌹🙏Radhey Radhey 🙏🌹🙏🌹🙏 bidhi btane ke liye dhanywad 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  3. आप को धन्यावाद आपने पूर्ण बिधि द्वारा जानकरी दी आप को प्रणाम व धन्यबाद।

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