Shri Ram Raksha Stotra in Hindi

श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित हिंदी में ॥ Shri Ram Raksha Stotra in Hindi Arth Sahit

कवच

Shri Ram Raksha Stotra in Hindi :  इस स्तोत्र का पाठ करने वालों का श्रीराम द्वारा रक्षण होता है। श्री राम रक्षा स्तोत्र बुध कौशिक ऋषि द्वारा रचित श्री राम का स्तुति गान है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान शंकर ने बुधकौशिक ऋषि को स्वप्न में दर्शन देकर उन्हें राम रक्षा स्त्रोत सुनाया था। ऋषि ने सुबह उठकर भोजपत्र पर इस स्त्रोत को लिख लिया। राम रक्षा स्त्रोत संस्कृत में लिखा गया है। श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ को करने से भगवान श्रीराम हमेशा प्रसन्न रहते हैं और सदैव पाठ करने वाले की रक्षा करते हैं।

॥श्री राम रक्षा स्तोत्र ॥ Shri Ram Raksha Stotra in Hindi

श्री गणेशाय नम: ।

 

राम रक्षा स्तोत्र पढ़ने से पहले हाथ में जल लेकर इसको पढ़ें…

विनियोगः – ॐ अस्य श्री रामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः, श्री सीतारामचन्द्रोदेवता, अनुष्टुप् छन्दः, सीताशक्तिः, श्रीमद्हनुमान कीलकम् श्रीसीतरामचन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।
अर्थ:- इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं।

अब जल को जमीन पर छोड़कर भगवान श्रीराम का ध्‍यान करें…

॥ अथ ध्यानम्‌ ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्‌मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्‌ ॥
वामाङ्‌कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्‌कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम्‌ ॥
अर्थ:- जो धनुष बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासन की मुद्रा में विराजित हैं और पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलों से स्पर्धा करते हैं (अर्थात जो कमल दलों से भी सुन्दर हैं), जो प्रसन्नचित्त हैं, जिनके बाएं अङ्क में बैठी सीता के मुख कमल से मिले हुए हैं तथा जिनका रंग बादलों की तरह श्याम है, उन अजानबाहु, विभिन्न आभूषणों से विभूषित जटाधारी श्री राम का (मैं) ध्यान करता हूँ।

॥ इति ध्यानम्‌ ॥

श्री राम रक्षा स्तोत्र:

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्‌ ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम्‌ ॥१॥
अर्थ:- श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं। उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला (करता) है।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्‌ ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम्‌ ॥२॥
अर्थ:- नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमल नेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान श्री राम का स्मरण करके,

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम्‌ ।
स्वलीलया जगन्नातुमाविर्भूतमजं विभुम्‌ ॥३॥
अर्थ:- जो अजन्मा (जिनका जन्म न हुआ हो, अर्थात जो प्रकट हुए हों), एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,

रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥४॥
अर्थ:- मैं सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले और समस्त पापों का नाश करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ। राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें।

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
अर्थ:- कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञ रक्षक मेरे घ्राण (नाक) की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें।

जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥
अर्थ:- मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, भरत-वन्दित मेरे कंठ की रक्षा करें, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेव का धनुष तोड़ने वाले भगवान श्रीराम रक्षा करें।

करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्‌ ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
अर्थ:- मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें।

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत्‌ ॥८॥
अर्थ:- मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और सभी रघुओं में उत्तम और राक्षसकुल का विनाश करने वाले श्री राम जाँघों की रक्षा करें।

जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्‌घे दशमुखान्तक: ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥
अर्थ:- सेतु का निर्माण करने वाले मेरे घुटनों की, दशानन का वध करने वाले मेरी अग्रजंघा की, विभीषण को ऐश्वर्य देने वाले मेरे चरणों की और सम्पूर्ण शरीर की श्री राम रक्षा करें।

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत्‌ ॥१०॥
अर्थ:- शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं।

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्‌मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
अर्थ:- जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्म वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्‌ ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
अर्थ:- राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भक्ति और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।

जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्‌ ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥
अर्थ:- जो राम नाम से सुरक्षित जगत पर विजय करने वाले इस मन्त्र को अपने कंठ में धारण करता है, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्‌ ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्। ॥१४॥
अर्थ:- जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं।

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान्‌ प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
अर्थ:- स्वप्न में बुधकौशिक ऋषि को भगवान शिव का आदेश होने पर बुधकौशिक ऋषि ने प्रातः जागने पर इस स्तोत्र को लिखा।

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम्‌ ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्‌ स न: प्रभु: ॥१६॥
अर्थ:- जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
अर्थ:- जो युवा, सुन्दर, सुकुमार, महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं।

फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
अर्थ:- जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्मचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्‌ ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
अर्थ:- ऐसे महाबली रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारी रक्षा करें।

आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग संगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम्‌ ॥२०॥
अर्थ:- संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर धारण किये हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें।

संनद्ध: कवची खड्‌गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथोऽस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥
अर्थ:- हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण धारण किये युवावस्था वाले भगवान राम लक्ष्मण सहित आगे आगे चलकर हमारी रक्षा करें।

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
अर्थ:- भगवान शिव का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
अर्थ:- वेदांतवेद्य, यज्ञेश, पुराण पुरूषोतम, जानकी वल्लभ, श्रीमान और श्री अप्रमेय पराक्रम,

इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्‌भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
अर्थ:- आदि नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं इसमें कोई संशय नहीं है।

रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामिभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणौ नरः ॥२५॥
अर्थ:- दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसार चक्र में नहीं पड़ता।

रामं लक्ष्मण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ॥
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्‌ ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम्‌ ॥२६॥
अर्थ:- लक्ष्मण के बड़े भाई रघुवर, सीता जी के पति, काकुत्स्थ राजा के वंशज, करुणा के सागर, गुण-निधान, विप्रों (ब्राह्मणों) के प्रिय, परम धार्मिक (धर्म के रक्षक), राजराजेश्वर (राजाओं के राजा), सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्यामवर्ण, शान्ति स्वरुप, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक, राघव एवं रावण के शत्रु भगवान राम की मैं वंदना करता हूँ।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
अर्थ:- राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप, रघुनाथ प्रभु एवं सीता जी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
अर्थ:- हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज (बड़े भाई) भगवान राम! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए।

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
अर्थ:- मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण करता हूँ और श्रीराम के चरणों का वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ।

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
अर्थ:- श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता , मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं । इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं। उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम्‌ ॥३१॥
अर्थ:- जिनके दक्षिण में (दाई ओर) लक्ष्मण जी, बाई ओर जानकी जी और सामने हनुमान ही विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ।

लोकाभिरामं रनरङ्‌गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्‌ ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
अर्थ:- मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा युद्धकला में धीर, कमल के समान नेत्र वाले, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार की श्रीराम की शरण में हूँ।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्‌ ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
अर्थ:- मन के समान गति और वायु के सामान वेग (अत्यंत तेज) वाले, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, वायु के पुत्र, वानर दल के अधिनायक (leader) श्रीराम दूत (हनुमान) की मैं शरण लेता हूँ।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥३४॥
अर्थ:- मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्‌ ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्‌ ॥३५॥
अर्थ:- मैं सभी लोकों में सुन्दर श्री राम को बार-बार प्रणाम करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख सम्पति प्रदान करने वाले हैं।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम्‌ ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्‌ ॥३६॥
अर्थ:- ‘राम-राम’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। वह समस्त सुख सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं। राम राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
अर्थ:- राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान श्रीराम का भजन करता हूँ। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ। मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ। हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
अर्थ:- (शिवजी पार्वती से कहते हैं) हे सुमुखी ! राम- नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं। मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम नाम में ही रमण करता हूँ।

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

॥ Iththi ShreeBudhakaushikavirachitham  Shri Ram Raksha Stotra in Hindi Sampoornam (Jai Shri Ram) ॥ 

॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

 

Shri Ram Raksha Stotra in English Lyrics (Jai Shri Ram)

॥ Shri Ram Raksha Stotram ॥
 
Shri Ganeshaaya Namaha ।
Asya Shri Rama Raksha stotra mantrasya ।
Budha Koushika Rushi-hi।
Shri Seeta Ramachandro devataa ।
Anushtup Chanda-ha | Seeta shakti-hi ।
Srimad Hanumaan-a Keelakam-m ।
Shri Seeta Ramachando preetyarte jape viniyoga-ha ॥
 
॥ Aththa Dhyanam ॥
 
Dhyaye daajaanu baahum dhruta shara danusham badra padma sanastham ।
Peetham vaaso vasaanam navakamala dala spardhi netram prasannam ॥
Vaaman-karuDa Sita muka kamala mila lochanam neera daabam ।
Naanaa lankaara deeptham dadha tamuru jataa mandanam Ramachandram ॥
 
॥ Iththi Dhyanam ॥
 
Charitham Raghunaathasya shatha koti pravistaram ।
Ekaika maksharam pumsaam maha paataka naashanam ॥1॥
 
Dhyatva neelotpala Shyamam Ramam raajiva lochanam ।
Jaanaki Lakshmano pethaam jata mukuta manditham ॥2॥
 
SaasitUna dhanurbaana paanim naktham charaantakam ।
Svaleelaya jagatraatu maavirbhUta majam vibhum ॥3॥
 
Ramaraksham patetpradnya-ha paapagneem sarvakaamadham ।
Shiro me Raghava-h paatu bhaalam dasharathaatmaja-ha ॥4॥
 
Kausalyeyo drushau paathu Vishwamitra priya-h shrutee ।
Ghraanam paathu makhatraathaa mukham Saumitri vatsala-ha ॥5॥
 
Jivhaam vidya nidhi-h paathu kanTam Bharata vandita-ha ।
Skandhau divya yudha-h paathu bhujhau bhagnesha kaarmuka-h ॥6॥
 
Karau Sitapati-h paatu hrudayam Jaamadagnyajit ।
Madhyam paathu khara dhwamsee naabhim Jaambhavadaashraya-ha ॥7॥
 
Sugreevasha katee paathu sakthinee Hanumath-prabhu-h ।
Uruu Raghuththama-h paathu raksha-h kula vinaasha-kruth ॥8॥
 
Jaanunee sethukruth-paathu jadgne dasha-mukhaanthaka-ha ।
Paadhau BibheeshaNa-shreeda-h paathu Raamo-n-khilam vapu-h ॥9॥
 
Yethaam Rama-balO-pethaam rakshaam ya-h sukruthee paTet ।
Sa chiraayu-h sukhee putree vijayi vinayi bhavet ॥10॥
 
Paataala bhutalavyoma chaariNashchadh-ma chaarina-ha ।
Na drushtumapi shaktaaste rakshitam Rama naamabhi-hi ॥11॥
 
Rameti Ramabhadrethi Ramachandrethi vaa smarana ।
Naro na lipyate paapai bhukthim mukthim cha vindathi ॥12॥
 
Jagajjetraika-mantreNa Ramanam-naabhi-rakshitam ।
Ya-h kaNTe dhaarayethtasya karasthhA-h sarvasidhdhaya-h ॥13॥
 
Vajra-panjaranaamedam yo Raamakavacham smaret ।
Avyaahataagnya-h sarvatra labhate jayamangalam ॥14॥
 
Adishtavaan yathaa swapne Ramarakshaamimaam hara-h ।
Tatha likhitavaana praata-h prabhudhdho budhakaushika-h ॥15॥
 
Aaraama-h kalpavrukshaaNaam viraama-h sakalapadaam ।
Abhiraamstrilokaanaam Rama-h shreemaan sa na-h prabhu-h ॥16॥
 
Tarunnau roopasampannau sukumaarau mahabalau ।
Pundareeka-vishaalakshau cheera krushNaa jinaambarau ॥17॥
 
Phalamoolashinau daantau taapasau brahmachaariNau ।
Putrau dasharathasyaythau bhratarau RamalakshmaNau ॥18॥
 
Sharanyau sarvasatvaanaam shreshTau sarvadhanushmatham ।
Raksha-h-kulanihantaarau traayetaam no raghuththamau ॥19॥
 
Aaththasajhjha-dhanushaa vishusprushaa shuganishandga sandginau ।
RakshaNaaya mama RaamalakshmaNaa vagratha-h pathi sadaiva gachchathaam ॥20॥
 
Sannaddha-h kavachee khaDgee chaapabaaNadharo yuvaa ।
gachchana-manoratho-smaakam Raama-h paathu sa-lakshmana-h ॥21॥
 
Raamo Daasharathi-h shooro LakshmaNaa-nucharo balee ।
Kaakutstha-h purusha-h poorna-h Kausalyeyo raghuththamma-h ॥22॥
 
Vedantavedhyo yagnesha-h puraaNapurushoththama-h ।
Janakeevallabha-h Shrimaan-naprameya parakrama-h ॥23॥
 
Ityetaani japennityam madbhakta-ha shraddhayaanvita-h ।
Ashwamedhaayutam punyam sampraaprOti na samshaya-ha ॥24॥
 
Raamam duurvaadalashyamam padmaaksham peetavaasasam ।
Stuvanti naamabhirdhirvyairna te samsaarinO nara-h ॥25॥
 
Raamam LakshmaNa puurvajam Raghuvaram Seetapatim sundaram ।
KaakutasTham karuNaarNavam guNanidhim viprapriyam dhaarmikam 
Raajendram satyasamdham Dasharathanayam shyamalam shaantamuurthim ।
Vande lokabhiraamam Raghukulatilakam Raaghavam RaavaNaarim ॥26॥
 
Raamaya Raamabhadraaya Raamachandraaya vedhase ।
Raghunaathaaya naathaaya Seethaayaa-h pathaye namah ॥27॥
 
Shreeraam Raam Raghunandana Raam Raam ।
Shreeraam Raam Bharathaagraja Raam Raam ।
Shreeraam Raam RaNakarkasha Raam Raam ।
Shreeraam Raam SharaNaM bhava Raam Raam ॥28॥
 
ShreeraamachandracharaNau manasaa smaraami ।
ShreeraamachandracharaNau vachasaa gruNaami ।
ShreeraamachandracharaNau shirasaa namaami ।
ShreeraamachandracharaNau sharaNam pradhye ॥29॥
 
Maataa Raamo matpithaa Ramachandra-ha ।
Swamee Raamo matsakhaa Ramachandra-ha ।
Sarvaswam me RamachandrO dayaalu ।
Naanyam jaane naiva jaane na jaane ॥30॥
 
DakshiNe LakshmaNO yasya vaame tu Janakaatmajaa ।
Puratho Maarutiryasya tam vande Raghunandanam ॥31॥
 
Lokabhiraamam ranarangadheeram raajeevanetram Raghuvamshanaatham ।
KaaruNyaroopam karuNaakaramtam Shreeraamachandram sharaNam prapadhye ॥32॥
 
Manojavam Maarutatulyavegam jitendriyam varishTam ।
Vaataatmajam vaanarayuuthamukhyam Shreeraamadootam sharaNam prapadhye ॥33॥
 
Koojantham Raamaraameti madhuram madhuraaksharam ।
Aaruhya kavithashaakhaam vande Valmiikikokilam ॥34॥
 
Aapadaampahartaaram daataaram sarvasampadaam ।
Lokaabhiraamam Shreeraamam bhuyo bhuyo namaamyaham ॥35॥
 
Bharjanam bhavabeejaanaam-marjanam sukhasampadaam ।
Tarjanam yamadootaanaam Raamaraamethi garjanam ॥36॥
 
Raamo RaajamaNi-h sada vijayate Raamam ramesham bhaje ।
RaameNaabhihathaa nishaacarachamuu Raamaya tasmai namaha ।
Raamannaasti parayaaNam parataram Raamasya daaso-smayaham ।
Raame chiththalaya-h sada bhavatu me bho Raam maamudhdhara ॥37॥
 
Raama Raamethi Raamethi rame Raame manorame ।
Sahastranaama taththulyam Ramanaam varaanane ॥38॥
 
॥ Ithi ShreeBudhakaushikavirachitham 
Shri Ram Raksha Stotra in Hindi sampoorNam (Jai Shri Ram)
 
॥ Shree SitaramchandrarpaNamasthu ॥

 

श्री राम रक्षा स्तोत्र के लाभ: Shri Ram Raksha Stotra Benefits:  Shri Ram Raksha Stotra in Hindi (Jai Shri Ram)

  1. . राम रक्षा स्त्रोत का पाठ किसी भी तरह की बीमारियों और आपदा के दुष्परिणामों को रोकने के लिए किया जाता है।
  2. राम रक्षा स्त्रोत (Shri Ram Raksha Stotra in Hindi)  सभी प्रकार संकटों से सुरक्षा प्रदान करता है।
  3. नित्य राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति की सभी तरह की परेशानियों विपत्तियों से रक्षा होती है और सभी कष्ट दूर होते है।
  4. कुण्डली में मंगल और शनि का कुप्रभाव समाप्त होता है।
  5. नित्य राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करने से मनुष्य को किसी प्रकार का कोई भय नही सताता है।
  6. राम रक्षा स्त्रोत (Shri Ram Raksha Stotra in Hindi) का पाठ करने वाले व्यक्ति के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बन जाता है, जिससे व्यक्ति की हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा होती है।
  7. राम रक्षा स्त्रोत (Shri Ram Raksha Stotra in Hindi) का नित्य पाठ से व्यक्ति सुखी, दीर्घायु, संततिवान, विजयी और विनयसंपन्न बनती है।
  8. नवरात्रि के दिनों में राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करना बहुत ही शुभ फल दायक होता है।
  9. राम रक्षा स्त्रोत (Shri Ram Raksha Stotra in Hindi) का पाठ करने वालों का श्रीराम द्वारा रक्षण होता है।
  10. इस स्तोत्र के नित्य पाठसे घर की सर्व पीडा व भूतबाधा भी दूर होती है।

 

राम रक्षा स्तोत्रम के सरल उपाय

यदि न्यायालय में आपका कोई मामला लंबित हो, आप किसी परीक्षा, खेल, या फिर इंटरव्यूआदि के लिये जा रहे हो या किसी अनिष्ठ की आशंका आपको हो अथवा किसी कामकाज के सिलसिले में कोई यात्रा कर रहे हो तब कुछ सरसों को सिद्ध करके उनका उपयोग अत्यन्त चमत्कारी और लाभकारी होता है।

सरसों को सिद्ध कैसे करें?

एक कटोरी में थोड़ी सी सरसों लेकर उसे किसी आसन या ऊनी वस्त्र पर रखें। अब राम रक्षा स्तोत्रम का 11 बार पाठ करें और पाठ के दौरान अपनी ऊंगिलियों से सरसों के दानों को स्पर्श करें और सरसों के दानों को कटोरी में घुमाते रहें। राम रक्षा स्तोत्रम (Shri Ram Raksha Stotra in Hindi) का पाठ आप भी किसी आसन पर बैठकर ही करें और अपने सामने प्रभु श्री राम की प्रतिमा या श्री राम का रक्षा यंत्र अवश्य रखें फिर उस प्रतिमा या रक्षा यंत्र को देखते हुए आप मंत्रोच्चारण कर सकें। स्तोत्र का 11 बार पाठ होने के पश्चात सरसों के दाने सिद्ध हो जायेगे अब आप इसे पूजा घर या किसी पवित्र साफ-सुथरी जगह पर रख सकते हैं और आवश्यकता पडने पर इनका इस्तेमाल भी कर सकते है। जैसै-
1. यदि आपका कोई विवाद न्यायालय में लंबित है तो सिद्ध किये हुए सरसों के कुछ दानें अपनी जेब में डालकर ले जायें। जहां विपक्षी बैठा हो उसके सम्मुख इन दानों को फेंक दें। मुकदमा जल्द ही आपके पक्ष में हो जायेगा।
2. आप किसी प्रतियोगी परीक्षा, खेल, या फिर साक्षात्कार आदि के लिये जा रहे हैं तो अपनी जेब में इन सरसों के सिद्ध किये दानों को रखकर जायें।
3.यदि आप कहीं घूमने जा रहे हैं अथवा कामकाज के सिलसिले में कोई यात्रा कर रहे हैं तो भी सिद्ध सरसों के दानो को साथ रखने से आपका कार्य सिद्ध होगा व आपकी यात्रा मंगलमयी रहेगी।
4. यदि किसी अनिष्ठ की आशंका आपको हो तो भी आप सिद्ध सरसों को अपने साथ रख सकते हैं। आपकी सदैव रक्षा होगी।

 

पानी भी हो सकता है सिद्ध

इस पानी को विशेषकर औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल श्री राम रक्षा स्तोत्र (Shri Ram Raksha Stotra in Hindi) से सिद्ध पानी रोगी को पिलाया जा सकता है। मान्यता है कि इससे रोगी को काफी राहत मिलती है और धीरे-धीरे प्रभु श्री राम की कृपा से उन्हें रोग से मुक्ति मिलने लगती है। पानी को सिद्ध करने के लिये राम रक्षा स्तोत्रम का पाठ करते हुए तांबे के बर्तन में पानी भरकर इसे अपने हाथ में पकड़ कर रखें और अपनी दृष्टि पानी में रखें। श्री राम चंद्र का स्तुतिगान करते हुए महसूस करें कि आपकी ऊर्जा पानी में जा रही है। राम रक्षा मंत्रोच्चारण करते समय यह भी ध्यान रखें कि आपको प्रत्येक मंत्र का अर्थ भी ज्ञात हो।

 

रामरक्षास्त्रोत करते समय कुछ खास ध्यान रखने योग्य बातें

श्री रामरक्षास्त्रोत करते समय कुछ खास बातें भी ध्यान में रखना ज्यादा श्रेयकर माना गया है। राम रक्षा स्त्रोत (Shri Ram Raksha Stotra in Hindi) का पाठ करते समय भक्त को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जिस श्लोक का पाठ कर रहा है, उसके मन में श्रीराम की वहीं स्थिति होने चाहिए। जैसे…

श्लोक: श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणम् प्रपद्ये ।।२९।।
यानि इसी रूप में मतलब राम के चरणों का ध्यान इस दौरान मन वचन से रहे व स्वयं को उनके आगे नतमस्तक महसूस करते हुए उनकी शरण की अनुभूति करें।

श्लोक : दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य, वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य, तं वन्दे रघुनन्दनम् ।।३१।।
यानि इस मंत्र का पूजन करते समय श्रीराम के दक्षिण भाग में लक्ष्मण व वाम ओर माता सीता आदि का श्लोक के अनुसार मन में ध्यान लाएं।

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1 thought on “श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित हिंदी में ॥ Shri Ram Raksha Stotra in Hindi Arth Sahit

  1. श्री रामरक्षा स्तोत्र मराठी अर्थासहित….

    श्री रामरक्षा हे दैवी स्तोत्र नीट जाणून घ्या आपल्या भाषेतून….

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