Devi Suktam Arth Sahit in Hindi

देवी सूक्त (वाक् सूक्त) का पाठ रोज करने से होती है ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति॥ Devi Suktam Arth Sahit in Hindi

सूक्त

परा अम्बा, आदि शक्ति मॉ भगवती की पूजा अर्चना के साथ साथ देवी सूक्त ( Devi Suktam Arth Sahit in Hindi ) का पाठ करने का विशेष महत्व है। ऋग्वेद के दशम मण्डल का १२५ वें सूक्त को ‘वाक् सूक्त’ कहा गया है। इस सूक्त को ‘आत्मसूक्त’ भी कहते हैं। इसमें अम्भणऋषि की पुत्री वाक ने पर ब्रह्म का साक्षात्कार प्राप्त कर अपनी सर्वात्म दृष्टि के अनुभव को अभिव्यक्त कर रही हैं। ब्रह्मविद् की वाणी ब्रह्म से तादात्म्यापन्न होकर अपने आपको ही सर्वात्मा के रूप में वर्णन कर रही हैं। ये ब्रह्म स्वरूपा वाग देवी ब्रह्मानुभवी जीवन मुक्त महापुरुष की ब्रह्ममयी प्रज्ञा ही हैं। इस सूक्त में प्रतिपाद्य-प्रतिपादक का ऐकात्म्य सम्बन्ध दर्शाया गया है। यह सूक्त सानुवाद यहाँ प्रस्तुत है-

देवीसूक्त (वाक्-सूक्त) अर्थ सहित॥ Devi Suktam Arth Sahit in Hindi

ॐ अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥१॥
अर्थ- ब्रह्मस्वरूपा मैं रुद्र, वसु, आदित्य और विश्व देवता के रूप में विचरण करती हूँ अर्थात् मैं ही उन-उन रूपों में भास रही हूँ। मैं ही ब्रह्म रूप से मित्र और वरुण दोनों को धारण करती हूँ। मैं ही इन्द्र और अग्नि का आधार हूँ। मैं ही दोनों अश्विनी कुमारों का भी धारण-पोषण करती हूँ॥१॥

अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ॥२॥
अर्थ- मैं ही शत्रुनाशक, कामादि दोष-निवर्तक, परमाहाददायी, यज्ञगत सोम, चन्द्रमा, मन अथवा शिव का भरण-पोषण करती हूँ। मैं ही त्वष्टा, पूषा और भग को भी धारण करती हूँ। जो यजमान यज्ञ में सोमाभिषव के द्वारा देवताओं को तृप्त करने के लिये हाथ में हविष्य लेकर हवन करता है, उसे लोक-परलोक में सुखकारी फल देने वाली मैं ही हूँ॥२॥

अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्य्यावेशयन्तीम् ॥३॥
अर्थ- मैं ही राष्ट्री अर्थात् सम्पूर्ण जगत की ईश्वरी हैं। मैं उपासकों को उनका अभीष्ट वसु-धन प्राप्त कराने वाली हूँ। जिज्ञासुओं के साक्षात् कर्तव्य परब्रह्म को अपनी आत्मा के रूप में मैंने अनुभव कर लिया है। जिनके लिये यज्ञ किये जाते हैं, उनमें मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। सम्पूर्ण प्रपंच के रूप में मैं ही अनेकसी होकर विराजमान हूँ। सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर में जीवरूप में मैं अपने आपको ही प्रविष्ट कर रही हूँ। भिन्न-भिन्न देश, काल, वस्तु और व्यक्तियों में जो कुछ हो रहा है, किया जा रहा है, वह सब मुझमें मेरे लिये ही किया जा रहा है। सम्पूर्ण विश्व के रूप में अवस्थित होने के कारण जो कोई जो कुछ भी करता है, वह सब मैं ही हूँ॥३॥

मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति य: प्राणिति य ईं श्रृणोत्युक्तम्।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि ॥४॥
अर्थ- जो कोई भोग भोगता है, वह मुझ भोक्त्री की शक्ति से ही भोगता है। जो देखता है, जो श्वासोच्छवास रूप व्यापार करता है और जो कही हुई बात सुनता है, वह भी मुझसे ही। जो इस प्रकार अन्तर्यामि रूप से स्थित मुझे नहीं जानते, वे अज्ञानी दीन, हीन, क्षीण हो जाते हैं। मेरे प्यारे सखा! मेरी बात सुनो- मैं तुम्हारे लिये उस ब्रह्मात्मक वस्तु का उपदेश करती हूँ, जो श्रद्धा-साधन से उपलब्ध होती है॥४॥

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषि तं सुमेधाम् ॥५॥
अर्थ- मैं स्वयं ही इस ब्रह्मात्मक वस्तु का उपदेश करती हूँ। देवताओं और मनुष्यों ने भी इसी का सेवन किया है। मैं स्वयं ब्रह्मा हूँ। मैं जिसकी रक्षा करना चाहती हैं, उसे सर्वश्रेष्ठ बना देती हूँ, मैं चाहूँ तो उसे सृष्टिकर्ता ब्रह्मा बना दूँ, अतीन्द्रियार्थ ऋषि बना दूँ और उसे बृहस्पति के समान सुमेधा बना हूँ। मैं स्वयं अपने स्वरूप ब्रह्मभिन्न आत्माका गान कर रही हूँ॥५॥

अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश॥६॥
अर्थ- मैं ही ब्रह्म ज्ञानियों के द्वेषी हिंसारत त्रिपुरवासी त्रिगुणाभिमानी अहंकार असुर का वध करने के लिये संहारकारी रुद्र के धनुष पर ज्या (प्रत्यंचा) चढ़ाती हूँ। मैं ही अपने जिज्ञासु स्तोताओं के विरोधी शत्रुओं के साथ संग्राम करके उन्हें पराजित करती हूँ। मैं ही धुलोक और पृथिवी में अन्तर्यामि रूप से प्रविष्ट हूँ॥६॥

अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन् मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामू द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि॥७॥
अर्थ- इस विश्व के शिरोभाग पर विराजमान झुलोक अथवा आदित्य रूप पिता का प्रसव में ही करती रहती हूँ। उस कारण में ही तन्तुओं में पटके समान आकाशादि सम्पूर्ण कार्य दीख रहा है। दिव्य कारण-वारिरूप समुद्र, जिसमें सम्पूर्ण प्राणियों एवं पदार्थों का उदय-विलय होता रहता है, वह ब्रह्म चैतन्य ही मेरा निवास स्थान है। यही कारण है कि मैं सम्पूर्ण भूतों में अनुप्रविष्ट होकर रहती हूँ और अपने कारण भूत मायात्मक स्वशरीर से सम्पूर्ण दृश्य कार्य का स्पर्श करती हूँ॥७॥

अहमेव वात इव प्रवाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव॥८॥ [ऋक्० १०।१२५]

अर्थ- जैसे वायु किसी दूसरे से प्रेरित न होने पर भी स्वयं प्रवाहित होता है, उसी प्रकार मैं ही किसी दूसरे के द्वारा प्रेरित और अधिष्ठित न होने पर भी स्वयं ही कारण रूप से सम्पूर्ण भूतरूप कार्यों का आरम्भ करती हूँ। मैं आकाश से भी परे हूँ और इस पृथ्वी से भी। अभिप्राय यह है कि मैं सम्पूर्ण विकारों से परे, असंग, उदासीन, कूटस्थ ब्रह्मचैतन्य हूँ। अपनी महिमा से सम्पूर्ण जगत के रूप में मैं ही बरत रही हूँ, रह रही हूँ॥८॥

॥ इति देवी सूक्तम्‌ संपूर्णम्‌ ॥ Devi Suktam Arth Sahit in Hindi End ॥

 

श्री देवी सूक्त का पाठ कैसे करें? जानिए… Devi puja kese kare?  Devi Suktam Arth Sahit in Hindi

देवी सूक्त (Shree Devi Suktam Arth Sahit in Hindi) का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है देवी सूक्त का पाठ श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए जिससे देवी जी बहुत जल्दी प्रसन्न होती हैं और पूजा करने वाले को ब्रह्मज्ञान प्रदान करती है। परबह्म ज्ञान की इच्छा रखने वालो को देवी सूक्त का पाठ प्रतिदिन अवश्य करना चाहिए।

1. सर्व प्रथम सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने नित्य कर्म कर लेने के पश्चात स्नान आदि करके साफ कपड़े पहन ले।

2. अब जहां आप पूजा करना चाहते है वह स्थान साफ कर ले और वहां लाल रंग का कपडा बिछाकर उस पर माता दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

3. देवी को लाल और सफेद फूल और अन्य सामग्री जैसे- रोली, चावल, चंदन, हल्दी, केसर आदि चढ़ाएं और लाल और सफेद मिठाई  का भोग अवश्य लगाएं क्योंकि माता को लाल मिठाईयॉ अति प्रिय है।

4. इसके बाद देवी सूक्त  का पाठ करें और देवी की आरती उतारे। देवी की आरती आपको इस पोस्ट के नीचे मिल जाएगी।

5. अगर संस्कृत में देवी सूक्त का पाठ न कर पाएं तो हिंदी में देवी सूक्त का पाठ (DeviSuktam Arth Sahit in Hindi) करें। साथ ही साथ देवी का ध्यान करें।

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देवी सूक्त अर्थ सहित के लाभ (Devi Suktam Benefits in Hindi) –

देवी सूक्त के निम्न लिखित लाभ हैः- Devi Suktam Arth Sahit in Hindi

1. देवीसूक्त का पाठ करने से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है जिससे सभी दुखों का अंत हो जाता है।

2. देवीसूक्त का नित्य पाठ साधक कि सोच और निर्णय लेने की क्षमता का अदभुत विकास होता है। जिससे वह अपनी बुरे समय में भी सही निर्णय लेता है।

3. देवीसूक्त का नित्य नियमित रूप से पाठ करने वाला व्यक्ति को बह्मज्ञान की प्राप्ति होती है और वह इस मायावी संसार को छोडकर अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता है।

 

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15 thoughts on “देवी सूक्त (वाक् सूक्त) का पाठ रोज करने से होती है ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति॥ Devi Suktam Arth Sahit in Hindi

  1. 🙏🌹💐 Jai Mata Di 💐🌹🙏
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  2. Jai mata Di 🙏🙏🙏🙏 jai maa durga 🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

  3. Devi sukt in such a lyrical style, fantastic, excellent effort, keep doing for ordinary peoples like us. very much grateful to you and once again salute u.

  4. 🌷🌸🌻🌱Jai Ambey Gauri🌷🌻🌸🌱
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  5. Ye padte time rongte khade ho jate hain. Or itni shanti milti hain ki shabdo me bata nahi sakte🙏
    धन्यवाद गुरुजी🙏🙏🙏🙏कोटी-कोटी प्रणाम🙏🙏🙏🙏

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