भक्तो की कहानी (Bhakto ki New Kahani in Hindi):-
चोरी, हिंसा, झूठ, दम्भ (झूठा आडंबर), काम, क्रोध, अहंकार, मद (अपने आपको दूसरों से अधिक योग्य मानना), भेदबुद्धि (भेदभाव करने वाली बुद्धि या विचारधारा), शत्रुता, अविश्वास, डाह (ईर्ष्या, जलन) और स्त्री, सुरा (शराब, मदिरा) एवं द्युत (जुआ खेलना) के व्यसन इन पंद्रह अनर्थों की जड़ धन ही है। अत: जिसे आत्म कल्याण की इच्छा हो, उसे इस अर्थ (धन) कहलाने वाले अनर्थ को दूर से ही त्याग देना चाहिये।
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रैवत देश में एक देवमाली नामक ब्राह्मण रहता था। वह वेद-वेदाङ्गों का विद्वान, शास्त्रज्ञ, प्राणियों पर दया रखने वाला और भगवान की पूजा करने वाला था। किंतु देवमाली में एक ही कमी थी उसे धन और घर में उसकी बहुत आसक्ति थी। धन प्राप्त करने के लिये वह कुछ भी निषिद्ध या गलत कर्म करने में भी नही हिचकता था । धन के लोभ में वह चाण्डाल से भी दान ले लेता और दक्षिणा लेकर अपने व्रत, तप, पाठ आदि को भी दूसरों के लिये सङ्कल्प कर देता था। उसके दो पुत्र हुए यजमाली और सुमाली। पुत्रों के बड़े होने पर उस लोभी ब्राह्मण ने पुत्रों को धन कमाने के अनेक उपाय सिखलाये। इसी प्रकार का जीवन यापन करते हुए एक दिन देवमाली के मन में विचार आया कि जरा देखु तो मैरे पास कितना धन है और वह अपने धन को गिनने बैठ गयी। करोड़ो सोने की मुहर गिनते गिनते वह पहले तो बड़ा प्रसन्न हुआ, फिर उस धन को देखकर भगवान की कृपा से उसके चित्त मे विचार का उदय हुआ। वह सोचने लगा- मैंने अपने बूढापे तक हर तरह के अच्छे बुरे उपायो से इतना धन तो एकत्र कर लिया। फिर भी अभी तक मेरा लोभ नहीं गया। अब भी में अपने घर मे सोने का पर्वत देखने की इच्छा मे रात दिन जल रहा हूँ। लोग कहते हैं कि धन से सुख मिलता है, किंतु इस धन ने मुझे क्या सुख दिया। बाहर से मैं भले सुखी दीखता हूँ पर मेरे हृदय मे तो तनिक भी चैन नहीं है। मैं तो रात-दिन तृष्णा (कामना) तथा चिन्ता की आग से जला करता हूँ। यह धन की तृष्णा ही मेरे क्लेशो का कारण है। जिसको तृष्णा है, वह कुछ पा जाय तो उसकी तृष्णा (कामना) और बढती जाती है। बुढापे मे नेत्र, कान, हाथ पैर आदि सब इन्द्रियाँ और शरीर तो दुर्बल हो जाता है। किंतु तृष्णा तो और भी बलवान होती जाती है। जिसको धन की तृष्णा है, वह विद्वान होने पर भी मुर्ख है। धन के लिये मनुष्य बन्धु बान्धवों मे शत्रुता कर लेता है और अनेको प्रकार के पाप करता है। बल, तेज, यश, विद्या, शूरता, कुलीनता और मान इन सभी को धन की तृष्णा (कामना) नष्ट कर देती है। धन का लोभी अपमान और कलेश की चिन्ता नहीं करता, वह पाप को पाप नहीं गिनता। वह अपने हाथों से अपने लिये दुःख और नरक का मार्ग उत्साह पूर्वक बनाता है। हाय । हाय । मैने धन की लोभ में पड़कर सारी बहुमूल्य आयु नष्ट कर दी। मेरा शरीर भी जीर्ण हो गया। पाप वटोरने मे ही मेरा जीवन लगा। इस प्रकार पश्चाताप से ब्राह्मण व्याकुल हो गया। वह भगवान से अपने उद्धार के लिये प्रार्थना करने लगा।
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पश्चात्ताप एवं भगवान की प्रार्थना से देवमाली के हृदय मे बल आया। देवमाली ने शेष जीवन भगवान के भजन में लगाने का निश्चय किया। उसने स्वयं जो धन कमाया था, उसका आधा धन अपने पास रखकर शेष आधे धन को अपने दोनों पुत्रों में बराबर बराबर बॉट दिया। देवमाली ने अपने भाग के धन से मन्दिर, सरोवर, कुएँ, धर्मशाला आदि बनवाने, वृक्ष लगाने, अन्न दान किया। इस प्रकार अपने अपार धन को सत्कर्म मे लगाकर वह तपस्या करने बदरिकाश्रम को चला गया। बदरिकाश्रम में देवमाली ने पुष्प फलो से सुशोभित सुन्दर वृक्षों वाला एक आश्रम देखा। यहाँ अनेक वृद्ध मुनिगण शास्त्र चिन्तन मे लगे, भगवत सेवा करते हुए निवास करते थे। इन्ही मुनियों के बीच में एक परम शान्त तेज पुन्ज महात्मा भगवान की स्तुति कर रहे थे। देवमाली ने उनके चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम किया। वे परम तपस्वी केवल सूखे पत्ते खाकर रहने वाले महात्मा जानन्ति थे। ब्राह्मण ने अपना सारा इतिहास महात्मा जानन्ति को सुनाकर नम्रता पूर्वक उनसे अपने उद्वार का उपाय पूछा।
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महात्मा जानन्ति ने कृपा करके ब्राह्मण से कहा- तुम नित्य निरन्तर भगवान विष्णु का ही स्मरण और भजन करो। किसी के दोष मत देखो। किसी की चुगली मत करो। सदा परोपकार में लगे रहो। मूर्ख का साथ छोड़कर श्री हरि की पूजा में ही लगे रहो। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, द्वेष को त्याग कर सभी प्राणियो को सर्वथा अपने समान समझो। न तो कभी किसी से कोई कठोर वचन कहो और न कोई निर्दयता का व्यवहार करो। ईर्ष्या, परनिन्दा, दम्भ और अहङ्कार को सावधानी पूर्वक छोड़ दो। सभी प्राणियो पर दया करो। सत्पुरुषो की सेवा करो। जो पापी हैं, उन्हे पाप से छुडाने का प्रयत्न करो, उन्हे धर्म का सच्चा मार्ग बतलओ। प्रतिदिन आदर पूर्वक अतिथियो की सेवा करो। पत्र, पुष्प, माला, फल, तुलसी आदि से प्रतिदिन नियमपूर्वक भगवान नारायण की पूजा और व्रत करो। देवता, ऋषि तथा पितृगणों के लिये यथा समय विधि पूर्वक हवन, तर्पण तथा श्राद्ध करो। एकाग्र चित्त होकर भगवान के मन्दिर को स्वच्छ करना, लीपना, पुराने मन्दिरो का जीर्णोद्धार करना, मन्दिर मे दीपक जलाना आदि तुम्हारे समस्त पापो को दूर कर देगा। भगवान की पूजा, भगवान की स्तुति, पुराण-श्रवण, पुराण पाठ और शास्त्रो, वेदो का प्रतिदिन अध्ययन करना चाहिये। इन उपायों से शीघ्र ही तुम्हारा चित्त निर्मल हो जायगा। निर्मल चित्त होने पर उसमें स्वयं ज्ञान का उदय होगा और तब तुम्हारे सभी दुःख दूर हो जायेंगे। तुम्हें परम शान्ति प्राप्त होगी।
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मुनि जानन्ति की आज्ञा माँगकर देवमाली साधन में लग गये। यदि कभी कोई शङ्का होती तो वह गुरु से पूछकर सन्देह दूर कर लेते। इस प्रकार श्रद्वा एवं दृढता से नियम पूर्वक साधन करने मे वह शीघ्र ही निष्पाप हो गये। उसका हृदय निर्मल हो गया। भगवान की कृपा से उसे ज्ञान प्राप्त हुआ और अन्त मे गुरुदेव की आज्ञा से वाराणसी (काशी) मे आकर देवमाली ने भगवान का परम पद प्राप्त किया।
Hindi Stories with Moral:- इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी लोभी नही होना चाहिए और सदैव भगवान को याद करते रहना चाहिए ।
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जय श्री नारायण भगवान की कृपा सदा आप पर बनी रहै