देवी लक्ष्मी जी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है। लक्ष्मी जी की नित्य पूजा करने से मनुष्य के जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती है। देवी लक्ष्मी एक बार खुश हो जाती हैं तो आप पर धन की बारिश भी हो सकती है। मां लक्ष्मी के पूजन का शुभ दिन शुक्रवार को माना गया है। श्री लक्ष्मी चालीसा की रचना रामदास ने की थी। लक्ष्मी जी की आराधना के लिए निम्न श्री लक्ष्मी चालीसा (Shri Lakshmi Chalisa) का पाठ करना चाहिए।
श्री लक्ष्मी चालीसा (Shri Lakshmi Chalisa in Hindi)
॥ दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
अर्थ: हे मां लक्ष्मी दया करके मेरे हृदय में वास करो हे मां मेरी मनोकामनाओं को सिद्ध कर मेरी आशाओं को पूर्ण करो।
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
अर्थ: हे मां मेरी यही अरदास है, मैं हाथ जोड़ कर बस यही प्रार्थना कर रहा हूं हर प्रकार से आप मेरे यहां निवास करें। हे जननी, हे मां जगदम्बिका आपकी जय हो।
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
अर्थ: हे सागर पुत्री मैं आपका ही स्मरण करता हूं, मुझे ज्ञान, बुद्धि और विद्या का दान दो।
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
अर्थ: आपके समान उपकारी दूसरा कोई नहीं है। हर विधि से हमारी आस पूरी हों, हे जगत जननी जगदम्बा आपकी जय हो, आप ही सबको सहारा देने वाली हो, सबकी सहायक हो।
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
अर्थ: आप ही घट-घट में वास करती हैं, ये हमारी आपसे खास विनती है। हे संसार को जन्म देने वाली सागर पुत्री आप गरीबों का कल्याण करती हैं।
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
अर्थ: हे मां महारानी हम हर रोज आपकी विनती करते हैं, हे जगत जननी भवानी, सब पर अपनी कृपा करो। आपकी स्तुति हम किस प्रकार करें। हे मां हमारे अपराधों को भुलाकर हमारी सुध लें।
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
अर्थ: मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हुए हे जग जननी, मेरी विनती सुन लीजिये। आप ज्ञान, बुद्धि व सुख प्रदान करने वाली हैं, आपकी जय हो, हे मां हमारे संकटों का हरण करो।
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
अर्थ: जब भगवान विष्णु ने दुध के सागर में मंथन करवाया तो उसमें से चौदह रत्न प्राप्त हुए। हे सुखरासी, उन्हीं चौदह रत्नों में से एक आप भी थी जिन्होंने भगवान विष्णु की दासी बन उनकी सेवा की।
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
अर्थ: जब भी भगवान विष्णु ने जहां भी जन्म लिया अर्थात जब भी भगवान विष्णु ने अवतार लिया आपने भी रुप बदलकर उनकी सेवा की। स्वयं भगवान विष्णु ने मानव रुप में जब अयोध्या में जन्म लिया।
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
अर्थ: तब आप भी जनकपुरी में प्रगट हुई और सेवा कर उनके दिल के करीब रही, अंतर्यामी भगवान विष्णु ने आपको अपनाया, पूरा विश्व जानता है कि आप ही तीनों लोकों की स्वामी हैं।
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
अर्थ: आपके समान और कोई दूसरी शक्ति नहीं आ सकती। आपकी महिमा का कितना ही बखान करें लेकिन वह कहने में नहीं आ सकता अर्थात आपकी महिमा अकथ है। जो भी मन, वचन और कर्म से आपका सेवक है, उसके मन की हर इच्छा पूरी होती है।
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
अर्थ: छल, कपट और चतुराई को तज कर विविध प्रकार से मन लगाकर आपकी पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा मैं और क्या कहूं, जो भी इस पाठ को मन लगाकर करता है।
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
अर्थ: उसे कोई कष्ट नहीं मिलता व मनवांछित फल प्राप्त होता है। हे दुखों का निवारण करने वाली मां आपकी जय हो, तीनों प्रकार के तापों सहित सारी भव बाधाओं से मुक्ति दिलाती हो अर्थात आप तमाम बंधनों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करती हो।
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
अर्थ: जो भी चालीसा को पढ़ता है, पढ़ाता है या फिर ध्यान लगाकर सुनता और सुनाता है, उसे किसी तरह का रोग नहीं सताता, उसे पुत्र आदि धन संपत्ति भी प्राप्त होती है।
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
अर्थ: पुत्र एवं संपत्ति हीन हों अथवा अंधा, बहरा, कोढि या फिर बहुत ही गरीब ही क्यों न हो यदि वह ब्राह्मण को बुलाकर आपका पाठ करवाता है और दिल में किसी भी प्रकार की शंका नहीं रखता अर्थात पूरे विश्वास के साथ पाठ करवाता है।
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
अर्थ: चालीस दिनों तक पाठ करवाए तो हे मां लक्ष्मी आप उस पर अपनी दया बरसाती हैं। चालीस दिनों तक आपका पाठ करवाने वाला सुख-समृद्धि व बहुत सी संपत्ती प्राप्त करता है। उसे किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती।
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
अर्थ: जो बारह मास आपकी पूजा करता है, उसके समान धन्य और दूसरा कोई भी नहीं है। जो मन ही मन हर रोज आपका पाठ करता है, उसके समान भी संसार में कोई नहीं है।
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
अर्थ: हे मां मैं आपकी क्या बड़ाई करुं, आप अपने भक्तों की परीक्षा भी अच्छे से लेती हैं। जो भी पूर्ण विश्वास कर नियम से आपके व्रत का पालन करता है, उसके हृदय में प्रेम उपजता है व उसके सारे कार्य सफल होते हैं।
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
अर्थ: हे मां लक्ष्मी, हे मां भवानी, आपकी जय हो। आप गुणों की खान हैं और सबमें निवास करती हैं। आपका तेज इस संसार में बहुत शक्तिशाली है, आपके समान दयालु और कोई नहीं है।
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
अर्थ: हे मां, मुझ अनाथ की भी अब सुध ले लीजिये। मेरे संकट को काट कर मुझे आपकी भक्ति का वरदान दें। हे मां अगर कोई भूल चूक हमसे हुई हो तो हमें क्षमा कर दें, अपने दर्शन देकर भक्तों को भी एक बार निहार लो मां।
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
अर्थ: आपके भक्त आपके दर्शनों के बिना बेचैन हैं। आपके रहते हुए भारी कष्ट सह रहे हैं। हे मां आप तो सब जानती हैं कि मुझे ज्ञान नहीं हैं, मेरे पास बुद्धि नहीं अर्थात मैं अज्ञानी हूं आप सर्वज्ञ हैं।
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
अर्थ: अब अपना चतुर्भुज रुप धारण कर मेरे कष्ट का निवारण करो मां। मैं और किस प्रकार से आपकी प्रशंसा करुं इसका ज्ञान व बुद्धि मेरे अधिकार में नहीं है अर्थात आपकी प्रशंसा करना वश की बात नहीं है।
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
अर्थ: हे दुखों का हरण करने वाली मां दुख ही दुख हैं, आप सब पापों हरण करो, हे शत्रुओं का नाश करने वाली मां लक्ष्मी आपकी जय हो, जय हो। रामदास प्रतिदिन हाथ जोड़कर आपका ध्यान धरते हुए आपसे प्रार्थना करता है। हे मां लक्ष्मी अपने दास पर दया की नजर रखो।
।। इति लक्ष्मी चालीसा संपूर्णम्।।
Similar Chalisa: Hanuman Chalisa , Shiv Chalisa , Krishna Chalisa , Durga Chalisa
Shri Lakshmi Chalisa in English Lyrics:
॥ Doha ॥
Maatu Lakshmi Kari Kripaa, Karahu Hriday Mein Vaas ।
Manokamana Siddh Kari, Puravahu Meri Aas ॥
Sindhusuta Main Sumiron Tohi, Gyaan Buddhi Vidhya Dehu Mohi ॥
Tum Samaan Nahin Kou Upakaari, Sab Vidhi Puravahu Aas Hamaari ॥
Jai Jai Jagat Janani Jagadambaa, Sab Ki Tumahi Ho Avalambaa ॥
Tumahii Ho Ghat Ghat Ki Waasi, Binti Yahi Hamarii Khaasi ॥
Jag Janani Jai Sindhu Kumaari, Deenan Ki Tum Ho Hitakaari ॥
Vinavon Nitya Tumhi Maharani, Kripa Karo Jag Janani Bhavaani॥
Kehi Vidhi Stuti Karon Tihaarii, Sudhi Lijain Aparaadh Bisari ॥
Kriapadrishti Chita woh Mam Orii, Jagat Janani Vinatii Sun Mori ॥
Gyaan Buddhi Jai Sukh Ki Daata, Sankat Harahu Hamaare Maata ॥
Kshir Sindhu Jab Vishnumathaayo, Chaudah Ratn Sindhu Mein Paayo ॥
Sindhusuta Main Sumiron Tohi, Gyaan Buddhi Vidhya Dehu Mohi ॥
Tum Samaan Nahin Kou Upakaari, Sab Vidhi Puravahu Aas Hamaari ॥
Jai Jai Jagat Janani Jagadambaa, Sab Ki Tumahi Ho Avalambaa ॥
Tumahii Ho Ghat Ghat Ki Waasi, Binti Yahi Hamarii Khaasi ॥
Jag Janani Jai Sindhu Kumaari, Deenan Ki Tum Ho Hitakaari ॥
Vinavon Nitya Tumhi Maharani, Kripa Karo Jag Janani Bhavaani ॥
Kehi Vidhi Stuti Karon Tihaarii, Sudhi Lijain Aparaadh Bisari ॥
Kriapadrishti Chita woh Mam Orii, Jagat Janani Vinatii Sun Mori ॥
Gyaan Buddhi Jai Sukh Ki Daata, Sankat Harahu Hamaare Maata ॥
Kshir Sindhu Jab Vishnumathaayo, Chaudah Ratn Sindhu Mein Paayo ॥
Chaudah Ratn Mein Tum Sukhraasi, Seva Kiyo Prabhu Banin Daasi ॥
Jab Jab Janam Jahaan Prabhu Linhaa, Roop Badal Tahan Seva Kinhaa ॥
Swayam Vishnu Jab Nar Tanu Dhaara, Linheu Awadhapuri Avataara ॥
Tab Tum Prakat Janakapur Manhin, Seva Kiyo Hriday Pulakaahi ॥
Apanaya Tohi Antarayaami, Vishva Vidit Tribhuvan Ki Swaami ॥
Tum Sam Prabal Shakti Nahi Aani, Kahan Tak Mahimaa Kahaun Bakhaani ॥
Mann Karam Bachan Karai Sevakaai, Mann Eechhit Phal Paai ॥
Taji Chhal Kapat Aur Chaturaai, Pujahi Vividh Viddhi Mann Laai ॥
Aur Haal Main Kahahun Bujhaai, Jo Yah Paath Karai Mann Laai॥
Taako Koi Kasht Na Hoi, Mann Eechhit Phal Paavay Soii ॥
Traahi- Traahii Jai Duhkh Nivaarini, Trividh Tap Bhav Bandhan Haarini ॥
Jo Yeh Parhen Aur Parhaavay, Dhyan Laga Kar Sunay Sunavay ॥
Taakon Kou Rog Na Sataavay, Putr Aadi Dhan Sampati Paavay ॥
Putraheen Dhan Sampati Heena, Andh Badhir Korhhi Ati Diinaa ॥
Vipr Bulaay Ken Paath Karaavay, Shaankaa Dil Mein Kabhi Na Laavay॥
Path Karaavay Din Chalisa, Taapar Krapaa Karahin Gaurisaa ॥
Sukh Sampatti Bahut-Si Paavay, Kami Nanhin Kaahuu Ki Aavay ॥
Baarah Maash Karen Jo Puja, Tehi Sam Dhanya Aur Nahin Dujaa ॥
Pratidin Paath Karehi Man Manhi, Un sam koi Jag Mein Naahin ॥
Bahuvidhi Kaya Mein Karahun Baraai, Ley Parikshaa Dhyaan Lagaai ॥
Kari Vishvaas Karay Vrat Naima, Hoi Siddh Upajay Ur Prema ॥
Jai Jai Jai Lakshmi Bhavani, Sab Mein Vyaapit Ho Gun khaani ॥
Tumhro Tej Prabal Jag Maahin, Tum Sam Kou Dayaalu Kahun Naahin ॥
Mohi Anaath Ki Sudhi Ab Lijay, Sannkat Kaati Bhakti Bar Deejay ॥
Bhool chook Karu Shamaa Hamaari, Darshan Deejay Dasha Nihaari ॥
Bin Darshan Vyaakul Adhikari, Tumhin Akshat Dukh Shatte Bhaari ॥
Nahin Mohi Gyaan Buddhi Hai Tan Mein, Sab Jaanat Ho Apane Mann Mein ॥
Roop Chaturbhuj Karke Dhaaran, Kasht Mor Ab Karahu Nivaaran॥
Kehi Prakaar Mein Karahun Badai, Gyaan Buddhi Mohin Nahin Adhikaai ॥
॥ Doha ॥
Trahi trahi dukh haarini, haro baygi sab traas
Jayati jayati jay Lakshmi, karo Shatru ka nash.
Ramdas dhari dhyan nit, vinay karat kar jor
Matu Lakshmi das pai, karhu daya ki kor
॥Shri Lakshmi Chalisa Ends॥
Shri Lakshmi Chalisa का जाप कैसे करें?
सुबह स्नान करने के बाद पश्चात देवी लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के सामने रखकर पूरे समर्पण भाव के साथ लक्ष्मी चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके प्रभाव को अधिक बढाने करने के लिए पहले लक्ष्मी चालीसा का हिंदी में अर्थ समझना बहुत जरूरी है। Shri Laxmi Chalisa का पाठ पाँच, ग्यारह, इक्कीस, इकावन और एक सौ आठ बार किया जा सकता है।
श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करने के लाभ:
Shri Lakshmi Chalisa Benefits:
1. Shri Lakshmi Chalisa का नियमित रूप से पाठ करने से मन को शांति मिलती है और आपके जीवन में धन सम्पदा का आगमन होता है। जीवन की सभी बुराईयां को दूर करता है।
2. लक्ष्मी चालीसा का नियमित पाठ करने से पापो का नाश होता है।
3. लक्ष्मी जी को घर पर बुलाने के लिए लक्ष्मी चालीसा का पाठ बहुत सरल उपाय है। ताकि वह आपको धन और समृद्धि प्रदान करे।
4. जब कोई नियमित रूप से लक्ष्मी चालीसा का जाप करता है, तो उसे अच्छे स्वास्थ्य और सुंदरता का आशीष प्राप्त होता है।
5. लक्ष्मी चालीसा का पाठ करते समय उत्पन्न होने वाला असली स्पंदन आपके आस-पास के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और नाकारात्मकता को दूर करता है।
इसे भी पढें- श्री लक्ष्मी जी की आरती
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