Vaidik Ganesh Stavan arth sahit in hindi

वैदिक गणेश स्तवन अर्थ सहित || Vaidik Ganesh Stavan Arth Sahit

सूक्त

हमारे पौराणिक ग्रंथों में भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना, वैदिक गणेश स्तवन (Vaidik Ganesh Stavan arth sahitt in Hindi) और उनकी महिमाओं की विशेष व्याख्या की गई है। भगवान गणेश की महिमा को कहीं साधु संतों ने अलग-अलग रूप में बताया है। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान श्री गणेश की स्तुति परम आवश्यक है अगर किसी पूजा में सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की स्तुति नहीं की जाती है तो वह पूजा अधूरी ही मानी जाती है और देवता भी उस पूजा को स्वीकार नही करते है। सर्वप्रथम वैदिक गणेश स्तवन अर्थ सहित (Vaidik Ganesh Stavan arth sahit  in Hindi) दिया गया है।

वैदिक गणेश स्तवन अर्थ सहित (Vaidik Ganesh Stavan arth sahit)

 

गणानां त्वा गणपति ᳬ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ᳬ
हवामहे निधीनां त्वा निधिपति ᳬ हवामहे वसो मम।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥ [शु० यजु० 23। 19]

अर्थ- हे परमदेव गणेशजी! समस्त गणों के अधिपति एवं प्रिय पदार्थों प्राणियों के पालक और समस्त सुख निधियों के निधिपति! आपका हम आवाहन करते हैं। आप सृष्टि को उत्पन्न करने वाले है, हिरण्यगर्भ को धारण करने वाले अर्थात संसार को अपने आप में धारण करने वाली प्रकृति के भी स्वामी है। आपको हम प्राप्त हो।

नि षु सीद गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम्।
न ऋते त्वत्क्रियते किं चनारे महामर्कं मघवञ्चित्रमर्च ॥ [ऋक्० 10।112।9]

अर्थ- हे गणपते! आप स्तुति करने वाले हम लोगों के मध्य में भली प्रकार स्थित होइये। आपको क्रान्तदर्शी कवियों में अतिशय बुद्धिमान सर्वज्ञ कहा जाता है। आपके बिना कोई भी शुभाशुभ कार्य आरम्भ नहीं किया जाता। (इसलिये) हे भगवन् (मघवन्)! ऋद्धि-सिद्धि के अधिष्ठाता देव! हमारी इस पूजनीय प्रार्थना को स्वीकार कीजिये।

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः
श्रृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम् ।। [ऋक्० 2।9।1।6]

अर्थ- हे अपने गणो मे गणपति (देव), क्रान्तदर्शियों (कवियों) में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र अतिशय भोग और सुख आदि के दाता! हम आपका आवाहन करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों।

नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमो
व्रातेभ्यो व्रातपतिभ्यश्च वो नमो नमो
गृत्सेभ्यो गृत्सपतिभ्यश्च वो नमो नमो
विरूपेभ्यो विश्वरूपेभ्यश्च वो नमः॥ [शुक्लयजु० 16। 25]

अर्थ- देवानुचर गण विशेषों को, विश्वनाथ महाकालेश्वर आदि की तरह पीठभेद से विभिन्न गणपतियों को, संघों को, संघपतियों को, बुद्धिशालियों को, बुद्धिशालियों कि परिपालन करने वाले उनके स्वामियों को, दिगम्बर-परमहंस जटिलादि चतुर्थाश्रमियों को तथा सकलात्मदर्शियों को नमस्कार है।

ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥ [कृ० यजुर्वेदीय मैत्रायणी० 2।9।1।6]

अर्थ- उन कराट (सूँड को घुमाने वाले) भगवान् गणपति को हम जानते हैं, गजवदन का हम ध्यान करते हैं, वे दन्ती सन्मार्ग पर चलने के लिये हमें प्रेरित करें।

नमो व्रातपतये नमो गणपतये नमः प्रमथपतये नमस्तेऽस्तु
लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये नमः।। [कृ० यजुर्वेदीय गणपत्यथर्वशीर्ष 10]

अर्थ- व्रातपति को नमस्कार, गणपति को नमस्कार, प्रमथपति को नमस्कार, लम्बोदर, एकदन्त, विघ्ननाशक, शिवतनय श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार है।

॥ Vaidik Ganesh Stavan arth sahit in Hindi Ends॥

 

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Vaidik Ganesh Stavan Arth Sahit

 

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