इंसान के सामने हमेशा एक सवाल रहा है। परमात्मा कौन है? उसका रूप क्या और किस प्रकार का है? वह कहाँ रहता है? परमात्मा से सम्पर्क कैसे किया जा सकता है? परमात्मा शब्द दो शब्दों ‘परम’ तथा ‘आत्मा’ से मिलकर बना है। परम का अर्थ है सर्वोच्च और आत्मा का अर्थ है चेतना, जिसे प्राण शक्ति भी कहा जाता है। परमात्मा वो शक्ति है जो इस धरती को ही नहीं वरन इस ब्रह्माण्ड को सुचारू रूप से चलाने के लिए उत्तरदायी है तथा ब्रह्माण्ड का प्रत्येक कण परमात्मा से पैदा हुआ है।
परमात्मा एक है अनेक नही
“एको अहम् द्वितीयो नास्ति”
सनातन वेद और गीता, कुरान, बाइबल, गुरुग्रंथसाहिबा सब यही कहते है- “परमात्मा एक है ” जो अजन्मा (जिसका कभी जन्म न हुआ हो), अविनाशी (जिसका कभी नाश न हो सके) तथा अनन्त है। परमात्मा निराकार है। परमपिता परमात्मा का दिव्य-रूप एक ‘ज्योति बिन्दु’ के समान, दीये की लौ जैसा है|
उपनिषदों में परमात्मा को सच्चिदानन्द कहा गया है। सत् अर्थात् शाश्वत अजर-अमर और अविनाशी स्वरूप। चित् अर्थात् चेतना। चेतना अर्थात् दिव्य गुणों से सुसज्जित, उच्चस्तरीय आदर्शों-आस्थाओं से युक्त। आनन्द अर्थात् भाव संवेदनाओं, सरसता, मृदुलता से सिक्त। परमात्मा को तर्कों से परे एवं तर्क सम्मत भी माना जा सकता है।
परमात्मा जिनका ध्यान शंकर जी हमेशा करते रहते हैं। जिन्हें क्रिश्चियन “god is lite” कहते हैं। यहूदी जेहोबा कहते हैं। जिनको गुरुनानक ने सतश्रीअकाल निराकार कहा है। जिनकी इस्लाम मे संगे असवद (शिवलिंग की तरह पत्थर) के रुप मे इबादत (जब हज यात्रा पर जाते हैं तो) करते हैं। बौद्ध धर्म में भी ज्योति के आकार के लाल पत्थर का उपयोग ध्यान करने में करते हैं।
परमात्मा ज्ञान का, प्रेम का, आनंद का, शान्ति का, सागर है। ध्यान और मुराक़बे के ज़रिये आप परमात्मा तक पहुंच सकते हैं वही आपका मूलस्वरूप है। जिस तरह पानी के बिना लहर नहीं हो सकती, उसी तरह संसार में बिना परमात्मा के कुछ नहीं हो सकता। परमात्मा के पास संपूर्ण ज्ञान है, जबकि जीव के पास ज्ञान अधूरा है। यही कारण है कि जब किसी की मृत्यु होती है, तो वह दुखी हो जाता है। ज्ञान होने पर इस दु:ख की अनुभूति नहीं होगी। अनंत आकाशगंगाए, अनंत गृह और उपग्रह, अनंत सजीव तथा निर्जीव वस्तुए आदि की जन्मदाता सिर्फ और सिर्फ वो शक्ति है जिसे परमात्मा के नाम से जाना जाता है। परमात्मा से जुडऩे का सबसे सरल उपाय है। स्वभाव से सरल हो जाओ। जैसे तुम अपने आप को प्रेम करते हो, वैसे ही प्रेम परमात्मा से भी करो । परमात्मा को अपना ही अंश समझो। नैतिकता से युक्त, पवित्र व स्वस्थ जीवन व्यतीत करना ही परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ पूजा है।
जीव जन्म और मृत्यु के चक्र में फसे रहते हैं तथा उनकी आयु निश्चित होती है और उस निश्चित आयु को पार कर लेने के पश्चात शरीर समाप्त हो जाता है। आत्मा का परम उद्देश्य परमात्मा में विलीन होना होता है जिससे वो जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सके।