देश में कोरोना वायरस का संक्रमण एक बार फिर से कहर बनकर टूट रहा है। पिछले साल के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त हो चुके हैं और रोज नए रिकॉर्ड बन रहे है। दूसरी लहर में कोरोना का विस्फोट बहुत घातक है। संक्रमण में आए एकाएक इस उछाल के चलते सरकार समेत आम लोगों के भी हाथ-पांव फूल रहे हैं। खौफ खाने वाली बात तो ये है कि जिन लोगों ने कोविड-19 वैक्सीन की दो खुराकें ले लीं हैं, उन्हें भी कोरोना वायरस अपनी चपेट में ले रहा है। इसमें आम लोगों के साथ-साथ डॉक्टर्स भी शामिल हैं। आखिर इसकी वजह क्या है? वैक्सीन लगवाने के बाद भी क्यों लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं? दरअसल, कोरोना वायरस की दूसरी लहर के पीछे कही ना कही हम सब खुद ही जिम्मेदार है। क्योंकि वैक्सीन आ जाने और कोरोना के मामले में गिरावट आने के बाद हम वैक्सीन को रामबाण समझ बैठे और यही पर हमने गलती कर दी। इस बात को आप ‘पेल्ट्जमैन इफेक्ट’ के तहत समझ सकते हैं। तो पहले जानते हैं क्या है ‘पेल्ट्जमैन इफेक्ट’ (Peltzman Effect) और क्यों लोग टीका लेने के बाद भी हो रहे हैं कोरोना से संक्रमित।
‘पेल्ट्जमैन इफेक्ट’ आखिर है क्या? (What Is Peltzman Effect)
आज जो देश में हालात हैं, उसमें लोगों में वैक्सीन लगवाने के बाद जोखिम लेने का साहस पहले से ज्यादा बढ़ गया है। इस बात को आप ‘पेल्ट्जमैन इफेक्ट’ के तौर पर बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। ‘पेल्ट्जमैन इफेक्ट’ नाम शिकागो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्री सैम पेल्ट्जमैन के नाम पर रखा गया है। सैम ने 1975 में पहली बार इसका वर्णन किया था। उनके इस सिद्धांत के मुताबिक, जब किसी भी चीज से बचने के लिए सुरक्षा उपाय आ जाते हैं, तो लोगों में जोखिम लेने के बारे में अवधारणा बदल जाती है और लोग ज्यादा जोखिम लेने लगते हैं। सिद्धांत के मुताबिक, पेल्ट्जमैन ने ऑटोमोबाइल का उदाहरण देते हुए बताया कि गाड़ी में सीट बेल्ट के इस्तेमाल को अनिवार्य कर देने के बाद से दुर्घटनाओं में ज्यादा वृद्धि देखी गई है। ऐसे में साफ है कि जब किसी जोखिम को लेकर कोई सुरक्षा उपाय हमें मिल जाती है तो हम में जोखिम लेने की भूख बढ़ जाती है। जब हमें ज्यादा खतरे का एहसास होता है, तो हम ज्यादा सुरक्षित रहते हैं और जब हम खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं, तो जोखिम भी ज्यादा लेते हैं।
Second Phase of COVID-19: कोरोना का Second Phase कितना है खतरनाक?
कोरोना वैक्सीन के बाद लोगों में बढ़ी सुरक्षा की भावना
अब देश में कोरोना वायरस (Coronavirus) के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस सिद्धांत की बात करें, तो लोगों के अंदर कोरोना वैक्सीन आ जाने के बाद से ही सुरक्षा की भावना पैदा होने लगती है। लोगों को लगा कि अब इस वैक्सीन के जरिए कोरोना वायरस से आसानी से लड़ा जा सकता है और टीका लगवा लेने के बाद तो लोग खुद को सुरक्षित महसूस करने लगे। इसी कारण लोगों के व्यवहार में इसका सीधा असर देखने को मिला। लोग ढीले पड़ते गए। उन्हें लगने लगा कि अब तो टीका ले लिया है, कोरोना नहीं होगा। लोग कोरोना निवारक उपायों का पालन कम करने लगे हैं। मास्क ना पहनना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करना, साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखना आदि में लापरवाही बरतने लगे हैं और यही वजह है कि कोरोना की दूसरी लहर पहली लहर से भी खतरनाक होती जा रही है।
कोरोना का सुरक्षा कवच नहीं है वैक्सीन
यदि आपको लगता है कि वैक्सीन लग जाने से आप सुरक्षित हो गए हैं, तो ऐसी गलती ना करें, क्योंकि वैक्सीन हमें पूरी तरह से बचाने या सुरक्षा प्रदान करने के लिए काफी नहीं है। हालांकि, इस बार लोगों में सुरक्षा की यह भावना काफी पहले आ गई है। लोग वैक्सीन सेंटर पहुंचने के बाद से ही निवारक उपायों का पालन करना जरूरी नहीं समझते हैं। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से संबद्ध लैंगोन हेल्थ के डॉक्टर्स ने पेल्ट्जमैन इफेक्ट की समीक्षा भी की, जिसे 2 मार्च को एसीपी जर्नल में प्रकाशित किया गया। समीक्षा में कहा गया है कि जो लोग वैक्सीन लगा चुके हैं, उनमें सुरक्षा को लेकर एक गलत भावना पैदा हो रही है। ऐसे लोगों में आत्मविश्वास की भावना अधिक बढ़ रही है, जो उनकी सेहत के लिए ही सही नहीं है। ऐसे लोग निवारक उपायों में ढील दे रहे हैं।