हर बीतते वक्त के साथ एक उम्मीद जगती है कि आने वाला पल, आने वाला समय, आने वाला दिल कुछ अच्छी खबर लेकर आएगा। लेकिन पिछले एक महीने से एक दिन भी ऐसा देखने को नहीं मिला। देश में इस वक्त कोहराम मचा हुआ है। देश में लोग एक-एक सांस के लिए तड़प रहे हैं। अस्पताल-दर-अस्पताल यही हाल है। इस खस्ता हाल सिस्टम से शहर-दर-शहर कांप रहे हैं। हर कोई बेबस बना हुआ है, जिधर देखिए चेहरे पर बेबसी, आखों में पानी और सिस्टम के खिलाफ शिकायतों से भरी हुई जुबां हैं। चाहे कोई भी शहर हो, कोई भी राज्य हो, सच्चाई तो सिर्फ इतनी है कि सांस लेने को इस ऑक्सीजन की किल्लत ने कई सांसों को थाम दिया हैं, कई परिवारों की जिंदगी हमेशा-हमेशा के लिए इस महामारी में तबाह हो गई हैं। वेंटिलेटर पर पहुंचे इस मेडिकल सिस्टम ने कई लोगों की बलि चढ़ा दी हैं। लखनऊ से लेकर भोपाल तक कई अस्पताल लिख रहे हैं कि अब यहां बेड उपलब्ध नहीं है। हालात जब हाथ से निकलने लगे तो बैठकों का दौर शुरू किया गया। जहां जख्मों पर सियासी नमक छिड़का जा रहा है। इंतजामों को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। लेकिन जमीनी हकीकत इन दांवों की पोल खोल रही हैं। शुक्रवार को भी ऑक्सीजन की कमी के कारण सिर्फ दिल्ली के एक अस्पताल में कम से कम 25 मरीजों की मौत हो गई। डॉक्टर्स खुद बता रहे हैं कि हालात वैसे ही है जैसे दो दिन पहले थे यानी अभी भी हमें प्रयाप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही तो हम मरीजों को कैसे बचाए? दिल्ली के जीटीबी अस्पताल में तो खुले आसमान के नीचे ही मरीजों का इलाज चल रहा है।
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अब जरा सोचिए, ये राजधानी दिल्ली के अस्पतालों का हाल है, जहां राजनीति के बड़े-बड़े सुरमा बैठे हैं। ऐसे में आप आसानी से अंदाजा लगा सकते है कि देश के बाकी के हिस्सों में क्या हाल होगा। विडंबना तो देखिए, ऐसे समय में जब कोरोना मरीजों के परिवार वाले ऑक्सीजन सिलेंडर और बेड के लिए दर-दर भटक रहे हैं तो हमारे नेता और राजनीतिक दल ऐसे भयानक और विकराल होते हालात के बीच भी राजनीति चमकाने में लगे हैं। दरअसल, कोरोना काल में भी सियासत का ‘बेशर्मकाल’ चल रहा है। राज्य सरकारें केंद्र पर आरोप लगा रही हैं तो केंद्र इसे राज्य का मुद्दा बता रही है। महामारी के इस दौर में नेताओं की ये खींचतान शर्मनाक है। यही वजह है कि कोरोना के इस हाहाकार के बीच पस्त पड़ी जनता को बचाने के लिए आखिरकार कोर्ट को सामने आना पड रहा है। संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन लगाने का फैसला हो या फिर अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई की बात हो, अदालत इस मामले में खुद संज्ञान ले रही है। अदालत को कहना पड़ रहा है कि जो भी हो जनता की जान बचा लो।
अदालत की तीखी टिप्पणी ‘किसी को भी नहीं छोड़ेंगे’
लगातार इस मामले तीसरे दिन शुक्रवार को सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, ‘यह आपराधिक स्थिति है। अगर कोई ऑक्सीजन की सप्लाई रोकता है, तो उसे किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे और फांसी पर लटका देंगे। कोर्ट ने कहा, ‘ऑक्सीजन को लेकर उठाए जा रहे कदम से अदालत संतुष्ट नहीं है लोगों को ऑक्सीजन सप्लाई करने के मामले में केंद्र सरकार को और भी सख्त कदम उठाने की जरूरत है। जीवन मौलिक अधिकार है।’ कोर्ट ने आगे ये भी कहा कि ‘ये कोरोना की दूसरी लहर नहीं सुनामी है, अभी भी नए मामलों में तेजी है। मई के मध्य में ये पीक पर पहुंच जाएगा। हम इसकी तैयारियां कैसे कर रहे है, ये हमें सरकार बताए। उधर एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट इसे राष्ट्रीय आपदा बताया था।
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हाईकोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र की ओर से पेश ASG के माध्यम से हाईकोर्ट में बताया कि हमारे अधिकारी ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार की तरफ से बताया गया कि यूपी और हरियाणा में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा था। केंद्र ने यह भी कहा कि भारतीय वायु सेना दुर्गापुर से ऑक्सीजन को एयरलिफ्ट करने की योजना पर काम कर रही है। हालांकि इन सब के बीच शुक्रवार को एक अच्छी खबर जरूर आई, वो ये कि, केन्द्र सरकार ने कोरोना काल में काम आने वाली कई चीजों को कस्टम ड्यूटी से छूट दे दी है। इसमें ऑक्सीजन और ऑक्सीजन से जुड़े इक्विमेंट के साथ साथ कोरोना वैक्सीन भी शामिल हैं। लेकिन सवाल है कि ये कदम उठाने में देरी क्यों?, आखिर हालत कब काबू में आएंगे?, क्या सियासत से उठकर कोरोना पर कंट्रोल किया जाएगा? आखिर कब तक लोगों को अस्पतालों में सही से ऑक्सीजन मिलनी शुरू हो जाएगी?