Oxygen emergency

Oxygen Crisis: कोरोना काल में ऑक्सीजन का आपातकाल

कोरोना भारत

देश में एक-एक सांस के लिए जनता झोली फैलाए भटक रही है। गैस एजेंसियों के सामने कठोर तपस्या कर रही है, ताकि उसे वो वरदान मिल जाए, जिसका नाम ऑक्सीजन है और वो अपने मरीजों की जान बचा सके। किसी को अस्पताल के लिए तो किसी को घर में अपने मरीज के लिए ऑक्सीजन (Oxygen) चाहिए। लेकिन दर दर भटकने के बाद भी इन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही। एक तरफ देश में ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मचा हुआ है और अपने आखों के सामने मरीज को लोग तडप-तडप कर मरते देख रहे हैं तो दूसरी तरफ ऑक्सीजन लीक होने के कारण नासिक में लोग मर रहे हैं। दरअसल, बुधवार को जाकिर हुसैन अस्पताल परिसर में लगे ऑक्सीजन टैंक (Oxygen) से दोपहर बाद ऑक्सीजन लीक होने लगी, जिसके कारण वेंटीलेटर के सहारे चल रहे 24 मरीजों की मौत हो गई। यानी सिस्टम की चौतरफा लापरवाही से देश तरस्त है। इसी लापरवाही को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट को इस मामले में दखल देना पड़ा। दिल्ली के कुछ अस्पताल में ऑक्सीजन की ततकाल जरूरत के संबंध में सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि ऑक्सीजन की कमी (Oxygen Crisis) की वजह से लोगों की जान जा रही है। लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि जनता राज्य पर निर्भर हैं। उन्हें ऑक्सीजन मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। आप गिड़गिड़ाइए, उधार लीजिए या चुराइए लेकिन ऑक्सीजन लेकर आइए, हम मरीजों को मरते नहीं देख सकते। इसकी कमी पूरा करना सरकार की जिम्मेदारी है। हाईकोर्ट ने कहा कि सच्चाई ये है कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से मरीज लगातार दम तोड़ रहे हैं और सरकार बेखबर है। उन्होंने कहा कि सरकार को लोगों की जान की बजाय सिर्फ और सिर्फ इंडस्ट्रीज (Industries) की चिंता है। इसका मतलब साफ है कि इस आपातकाल की स्थति में भी सरकार के लिए इंसान की जान मायने नहीं रखती। ऐसे में सवाल है कि देश में ऑक्सीजन का आपातकाल (Oxygen Emergency) आखिर आया कैसे? आखिर क्यों नहीं पूरी हो रही मांग?

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ऑक्सीजन की कितनी बढ़ोतरी हुई ?

आपको बताते है कि मांग में ऑक्सीजन की कितनी बढ़ोतरी हुई है। कोरोना महामारी से पहले देश में औसतन 700 मीट्रिक टन प्रतिदिन लीक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (LMO) की मांग थी। इसकी मांग बढकर 2800 मीट्रिक टन प्रतिदिन कोरोना की पहली लहर में हो गई तो वहीं कोरोना की दूसरी लहर में ये मांग 5000 मीट्रिक टन तक पहुंच गई।

भारत का ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता कितना ?

यहां ये बताना जरूरी है कि देश का रोजाना ऑक्सीजन उत्पादन उसकी सप्लाई से कहीं ज्यादा है। 12 अप्रैल की आंकड़ों के मुताबिक फिलहार रोजाना 7287 मीट्रिक टन देश में ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता है और हर दिन की खपत 3842 मीट्रिक टन है। अगर कोरोना काल में ऑक्सीजन की मांग 5000 मीट्रिक टन पहुंच भी गया है तब भी इसकी मांग उत्पादन क्षमता से कम है। मेडिकल और इंडस्ट्रीयल ऑक्सीजन का देश में मौजूदा फिलहाल स्टॉक 50000 मीट्रीक टन है। इंडस्ट्रीयल ऑक्सीजन को मेडिकल ग्रेड में परिवर्तित करने के लिए उसे 93 फीसदी तक प्यूरिफाई करना होता है।

सवाल है कि अगर देश में ऑक्सीजन उत्पादन की क्षमता सप्लाई से ज्यादा है तो फिर समस्याएं कहां है? दरअसल, समस्या है ऑक्सीजन को उन अस्पतालों तक पहुंचाने की, जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। कुल मिला कर तीन समस्याएं हैं। उस संख्या में क्रायोजेनिक टैंकर उपलब्ध नहीं है, ताकि लीक्विड ऑक्सीजन को आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सके। संक्रमण काफी तेज रफ्तार में बढ़ रही है जिससे एक साथ कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी हो रही है। सिलेंडर और साथ में सिलेंडरों में लगने वाले उपकरणों की भी किल्लत है। यही वजह है कि देश में ऑक्सीजन की मारामारी है।

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अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई कैसे बढ़ेगी ?

सरकार ने अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ाने के लिए उद्योगों को ऑक्सीजन देने पर रोक लगा दी है। केंद्र सरकार की तरफ से जारी आदेश के मुताबिक, अब केवल 9 इंडस्ट्रीज को ही ऑक्सीजन सप्लाई जारी है। इसमें फर्नेस प्रोसेस करने वाली यूनिट, इंजेक्शन और वैक्सीन की शीशी बनाने वाली यूनिट्स, भोजन और पानी को साफ करने वाली यूनिट​​​​​​, फार्मास्यूटिकल कंपनियां, वेस्ट वॉटर को शुद्ध करने की यूनिट, ऑक्सीजन सिलेंडर बनाने के प्लांट, पेट्रोलियम रिफाइनरी, स्टील प्लांट, न्यूक्लियर एनर्जी जैसे प्लांट शामिल हैं। इसके अलावा सहकारी समिति इफको  (IFFCO) ऑक्सीजन के प्लांट लगा रही है जहां से अस्पतालों को मुफ्त ऑक्सीजन की सप्लाई होगी। साथ ही जरूरतों को पूरा करने के लिए 50000 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन के आयात का फैसला किया गया है। लेकिन बावजूद इसके देश भर में ऑक्सीजन की घोर किल्लत है और लोग अपनों की जान बचाने खुद ऑक्सीजन के लिए दर-दर भटक रहे हैं।

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