हिमालय (Himalaya) की गोद में बसे केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) को कौन नहीं जानता। केदारनाथ जाने की मनोकामना हर शिव भक्तों (Shiva Devotee) के मन में होती है। वह कभी ना कभी तो केदारनाथ के दर्शन करके अपनी मनोकामना को सिद्ध करना चाहता है। केदारनाथ का क्रेज (Kedarnath) आज के टाइम में युवाओं में भी काफी देखा जाता है, सोशल मीडिया (Social Media) ने केदारनाथ की पॉपुलरिटी में चार चांद लगाने का काम किया है, जिसके बाद हर कोई एक बार इस धाम जरूर पहुंचना चाहता है। केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों (jyotirlinga’s) में से 1 ज्योतिर्लिंग माना जाता है। केदारनाथ को भगवान शिव (Lord Shiva) का निवास स्थान बताया जाता है। केदारनाथ को जागृत महादेव के नाम से भी जाना जाता है, यहां भगवान शिव का शिवलिंग त्रिकोण (Triangle) रूप में है।
सिर्फ छह महीने के लिए खुलते है शिव भक्तों के लिए कैदारनाथ के कपाट
गौरतलब है कि केदारनाथ पूरे साल में सिर्फ 6 महीनों के लिए भक्तों के लिए खुला रहता है, वही भारी हिमपात (Heavy Snowfall) के चलते हैं नवंबर से लेकर मध्य मई तक केदारनाथ के पट बंद रहते हैं। इस साल केदारनाथ के पट 17 मई को खोले जाएंगे। केदारनाथ से जुड़ी कई कथाएं है और पुराणों और ग्रंथों में भी इस धाम का वर्णन मिलता है। इसके साथ ही महाभारत (Mahabharat) में भी इस धाम से जुड़ी कथा प्रचलित है, जिसमें केदारनाथ में भगवान शिव ने पांडवों (Pandava’s) को साक्षात दर्शन दिए थे, जिसके उपरांत पांडवों द्वारा यहां शिव धाम को स्थापित किया गया था।
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पांडवों ने श्री कृष्ण के साथ महाभारत युद्ध की समीक्षा करने पर खुद को पाया पापों से युक्त
बता दें कि महाभारत के युद्ध (Mahabharat War) में जीत लेने के बाद पांडवों में सबसे जेष्ठ भाई युधिष्ठिर का राज्य अभिषेक किया गया था और वह हस्तिनापुर (Hasthinapur) के राजा बने थे, जिसके बाद कम से कम चार दशक तक युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर पर राज किया था। इसी दौरान एक समय की बात है जब श्री कृष्ण (Lord Krishna) के साथ बैठकर पांचो पांडव महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। समीक्षा के दौरान पांडवों ने श्री कृष्ण से कहा कि नारायण हम सभी भ्राता के ऊपर अपने बंधु बांधव की हत्या और ब्रह्म हत्या का कलंक लगा हुआ है, इस कलंक को हम कैसे दूर कर सकते हैं। जिस पर जवाब देते हुए श्री कृष्ण ने कहा कि सच तो यह है कि युद्ध में भले ही पांडवों की जीत हुई हो परंतु तुम लोगों पर बंधु बांधव और गुरु को मारने का पाप लगा है, जिससे तुम पाप (Sin) के भागी हो गए हो। यह बात सुनकर पांडवों को चिंता सताने लगी कि वह इस पाप से कैसे मुक्त हो सकते हैं। इसके साथ ही वह मन ही मन यह सोचने लगे कि राजपाट को त्याग कर वह कब जल्द से जल्द शिव जी की शरण में जाएं। इसी दौरान एक दिन पांडवों को यह सूचना मिली कि वासुदेव ने अपना देह त्याग दिया है और वह अपने स्थान को वापस लौट गए हैं, यह सुनकर पृथ्वी पर रहना पांडवों को उचित नहीं लग रहा था। वही पिता, महागुरु, सखा सब कुछ युद्ध भूमि में ही पीछे छूट गया था, वही पिता, माता, जेष्ठ सब वन को चले गए थे, इसके साथ ही सबके पालनकर्ता कृष्ण भी नहीं रहे थे।
पांडवो ने हस्तिनापुर का किया त्याग, द्रोपदी समेत निकले महादेव की खोज में
जिसके बाद पांडवों ने पूरा राज्य परीक्षित को सौंप दिया और वह द्रोपदी (Draupadi) के साथ हस्तिनापुर को त्याग करके महादेव की तलाश में निकल गए। महादेव के दर्शन पाने के लिए पांडव द्रोपदी समेत सबसे पहले काशी पहुंचे जहां पर महादेव उन्हें नहीं मिले। इसके साथ ही पांडवों ने और भी जगहों पर महादेव को खोजने का प्रयास किया पर उन्हें वहां भी भोलेनाथ नहीं मिले, क्योंकि जहां जहां पांडव जाते हैं वहां से शिवजी चले जाते। शिवजी को खोजने के प्रयास में पांडव द्रौपदी के साथ 1 दिन हिमालय (Himalaya) पहुंच गए।हिमालय पर पहुंचने के बाद शिवजी पांडवों को देखते हुए वहां से छिप गए लेकिन भगवान शिव को छिपते हुए युधिष्ठिर ने देख लिया, जिसके बाद युधिष्ठिर ने भगवान शिव से कहा कि आप हमसे कितना भी छिप जाए, लेकिन आप के दर्शन किए बिना हम यहां से नहीं जाएंगे। महादेव हम यह भी जानते हैं कि आप हम से इसलिए छिप रहे है ना क्योंकि हमने पाप किया है।
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भीम ने किया था बैल पर प्रहार, बैल का धड़ हुआ शिवलिंग में तब्दील
युधिष्ठिर के यह बोलने के पश्चात सभी पांडव शिव जी की ओर आगे बढ़ने लगे, उसी समय उन पर एक बैल (Bull) झपट पड़ा। बैल का उनके तरफ आक्रमण देखते हुए भीम उससे लड़ने लगे, जब भीम बैल से लड़ने लगे तो अपने बचाव में बैल ने अपना सर चट्टानों के पीछे छिपा लिया। जिसके बाद भीम ने बैल पर प्रहार करते हुए उसकी पूंछ पकड़कर उसे खींचा तो बैल का सिर धड़ से अलग हो गया। जिसके बाद बैल का धड़ शिवलिंग (Shivlings) में तब्दील हो गया। बैल के धड़ का शिवलिंग में तब्दील हो जाने के बाद उस शिवलिंग से महादेव ने पांडवो को दर्शन दिए और उनके पाप को शिवजी ने माफ कर दिया। आज भी इस घटना के प्रमाण के रूप में केदारनाथ का शिवलिंग बैल के कुले के समान दिखता है। वही जब पांडवों को भगवान शिव ने अपने दर्शन दिए और महादेव को साक्षात पाकर पांडवों द्वारा उन्हें प्रणाम किया गया।
पांडवों पर हुए महादेव खुश, पापों से किया उनको मुक्त, बताया स्वर्ग का मार्ग
इसके उपरांत देवादी देव महादेव (Mahadev) ने पांडवों को स्वर्ग का मार्ग बताया और वहां से फिर अंतर्ध्यान हो गए। महादेव के अंतर्ध्यान होने के बाद पांडवों द्वारा उस शिवलिंग की पूजा अर्चना की गई और अब यह शिवलिंग केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) के नाम से जाना जाता है। चूकि यहां शिव जी द्वारा पांडवों को स्वर्ग जाने का रास्ता (Heaven Route) बताया गया था, इसलिए हिंदू धर्म मान्यता (Hinduism belief) के अनुसार केदारनाथ दर्शन को मुक्ति स्थल भी बताया गया है। मान्यता यह भी है कि अगर कोई केदार दर्शन का मन में संकल्प लेकर निकले और इसी बीच उसकी मृत्यु (Death) हो जाए तो उसे जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है।