बंगाल इलेक्शन पर पूरे देश की नजर टिकी थी क्योकि यह भाजपा के लिए एक सुनहरा अवसर से कम नही था। सभी 2 मई के इन्तजार में अपनी नजरे टिकाए बैठे थे, आखिर क्यों न हो मतदान का परिणाम जो निकलने वाला था। परिणाम निकला और तृणमूल कांग्रेस के जीत का संदेश भी आया। लगातार तीसरी बार बंगाल में अपनी सरकार बना कर ममता बनर्जी ने मानों जैसे इतिहास ही रच दिया हो। इतना ही नहीं 200 से अधिक वोट लाने का दावा करने वाली भाजपा पार्टी दो अंकों में ही सिमट कर रह गई। इस बार का इलेक्सन काफी दिलचस्प रहा, कोई भी यह अनुमान नही लगा पा रहा था की आखिर बंगाल में किसकी सरकार बनने वाली है।
कोरेना के इस दौर में दोनो पार्टियों ने जमकर रैलियां की थी। लेकिन ऐसा क्या हुआ जिसके वजह से भाजपा बंगाल में इस बार अपनी सरकार बनाने से चूक गई।
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बंगाल में भाजपा के हार का क्या कारण है?
वैसे देखा जाए तो बंगाल में भाजपा के हार के कई कारण हो सकते है जिनमें से एक यह है कि मतदान से पहले भाजपा अपनी हर रैली में ममता बनर्जी और तृणमूल पर तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही, इतना ही नही भाजपा अपने हर रैली में जय श्री राम के नारे पर हुए विवाद को मुद्दा बना कर पेश करती रही। वही ममता भी पीछे नही रही, ममता ने पहले मंच पर चंडी पाठ की फिर हरे कृष्णा हरे हरे का नारा भी दिया। ऐसा माना जा सकता है की हिन्दू नोटरों को अपनी लरफ आकर्षित करने के लिए उनका यह दाव उलटा पङ गया।
एक कारण यह भी है भाजपा के पास मुख्यमंत्री बनने के लिए ममता के बराबर कोई चेहरा नहीं था जो कि हार का एक कारण बन गई। भाजपा ने पूरा इलेक्सन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही लङा।
एक वजह यह भी रहा की भाजपा बंगाल की जमीनी स्थिति का आकलन करने में कहीं न कहीं चूक गई। भाजपा अपने प्रदेशी नेताओं को importance देने के वजह चुनावी रणनीति का जिम्मा केन्द्रीय मंत्री को सौप दिया। अर्थात यह कहना गलत नहीं होगा की भाजपा बंगाल की संस्कृति और यहां के लोगो का mood भांपने में असमर्थ रही।
हार की वजह यह भी है की टिकट बँटवारे के समय भाजपा ने स्थानीय नेताओं के बदले में ऐसे लोगो को टिकट दिए जो कुछ ही घण्टे पहले पार्टी में शामिल हुए थे और कुछ ऐसे भी थे इनमें जो टिकट पाने के बाद भाजपा में शामिल हुए। ऐसे में जनता को यह समझने में देर नही लगी की भाजपा के पास उम्मीदवार ही नही है जिन्हे वे चुनाव के मैदान में उतार सके।
इतना ही नहीं लेफ्ट और कांग्रेस का वोट भी ममता की झोली में गया जो की भाजपा के लिए हार का कारण बन गया।
भाजपा का बंगाल मे 37-38 प्रतिशत तक वोट लाना भी कोई जीत से कम नही है। भाजपा को एक बात जान लेना चाहिए की लोकसभा चुनाव में जो strategy काम में आएगा वह जरूरी नही कि विधानसभा चुनाव में भी लगे। भाजपा ने यह गलती कर दी की जो formula उन्होने लोकसभा चुनाव में लगाया था उसी formula से विधानसभा चुनाव भी लङने लग गए।
सुभेन्दु नें ममता बनर्जी को नन्दीग्राम से हरा कर एक अलग ही इतिहास रच दिया। इतना सब होना भाजपा के लिए कोई बङी उपलब्धि से कम नहीं है। ममता बनर्जी भले ही नन्दीग्राम से हार गई हो पर लगातार तीसरी बार बंगाल में अपनी सरकार बना कर यह बता दिया की बंगाल में अब भाजपा का आना मुश्किल है।
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भाजपा ने असम में तो अपनी सरकार बनाने में समर्थ रही, लेकिन उन्हे बंगाल में मिले इस हार से जरूर कुछ सीखना चाहिए और आने वाले इलेक्शन में नये formula और strategy के साथ मैदान मे उतरना होगा वरना ऐसे ही हर जगह से मात मिल सकती है।