भारत चमत्कारों का देश माना जाता है। यहां पर महाभारत और रामायण काल की ऐसी ही कई जगह हैं, जिन्हें देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते हैं। आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका निर्माण महाभारत काल में पांडवों द्वारा सम्पन्न हुआ था। इस मंदिर का नाम है बाथू की लड़ी, इस मंदिर की खास बात यह है कि साल के आठ महीने यह मंदिर पानी में डूबा रहता है और सिर्फ चार महीने ही नजर आता है। यह मंदिर करीबन 5000 वर्ष पुराना है। इस मंदिर के निर्माण पांडवों में अपने अग्यात्वास के दौरान शिव की पूजा अर्चना हेतु किया था। इस मंदिर में कुल 6 मंदिर है। जिसमे पांच छोटे मंदिर है इन मन्दिरों में शेष नाग ,विष्णु भगवान की मूर्तियाँ स्थापित है और बीच एक मुख्य मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। इन मंदिरों को पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान केवल एक रात में बना दिये थे। वर्तमान में इन मंदिरों को देखने के लिए हजारों टूरिस्ट पहुंचते हैं।
पांडव ने बनाई थी स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ियाँ
इन मंदिरों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें महाभारत काल में पांडवों ने बनवाया था। पांडवों ने यहां स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी बनाने का प्रयास भी किया था, जो कि अधूरी रह गई। दरअसल अज्ञातवास पर निकले पांडवों ने यहां पहुंचकर पहले शिव मंदिर यानी बाथू की लड़ी का निर्माण किया फिर यहीं उन्होंने स्वर्ग में जाने के लिए सीढ़ी बनाने का फैसला किया जिसके बाद उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से गुहार लगाई और कृष्ण ने छ: महीने की एक रात कर दी। परन्तु इस समय सीमा में पांडव सीढ़ियो का निर्माण पूर्ण नही कर सके और सीढ़ियाँ अधूरी रह गयी। पांडव केवल 40 सीढ़ियाँ ही बना पायें। आज भी इस मंदिर में स्वर्ग की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ नजर आती है, जिसे लोग आस्था के साथ पूजते हैं।
मंदिर में शिव जी के पैर छूए बिना सूर्य अस्त नही होते
यह मंदिर कई सालों तक पानी में डूबा रहा था, लेकिन इस मंदिर की इमारत आज भी ज्यों की त्यों ही बनी हुई है। पानी में डूबने के बाद केवल पिलर का उपरी हिस्सा ही दिखाई देता है। इस मंदिर के अंदर एक पवित्र शिवलिंग है और साथ देवी काली और भगवान गणेश की भी तस्वीर बनी हुई है। इस मंदिर में एक रहस्य और भी है सूर्य के अस्त होने से पहले सूर्य की किरणें बाथू मंदिर में विराजमान महादेव के चरण छूती हैं। इसका रहस्य वैज्ञानिक भी नहीं लगा सके हैं। लेकिन इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है कि शिव की मूर्ति को छुए बिना सूर्य अस्त नहीं होते।
कैसे और कब पहुंचे इस मन्दिर में
इस मंदिर तक पहुँचने के लिए पर्यटक रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे से ज्वाली पहुंच सकते हैं जहां से इस मंदिर की दूरी 37 किमी की है। और सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है, गग्गल हवाई अड्डे से इस मंदिर की दूरी की दूरी डेढ़ घंटे की है। ज्वाली से बाथू की लड़ी पहुंचना होता है। अगर आप ट्रेन से जाना चाहते हैं, तो कांगड़ा रेलवे स्टेशन उतरकर किसी टैक्सी की मदद से यहां पहुंच सकते हैं। यह मंदिर मई-जून में ही पानी के बाहर रहता है बाकी महीने यह मंदिर पानी में डूबा रहता है। इसलिए केवल मई-जून में ही इस मंदिर मे जा सकते हैं।