Meghalay Farmer Nanadar

काली मिर्च की खेती ने इस किसान को ना सिर्फ किया मालामाल, बल्कि दिलाया पद्मश्री सम्मान

प्रेरणादायक कहानियाँ भारत

देश में किसानी आय का बहुत ही महत्वपूर्ण जरिया है और यही कारण है कि लोग किसानी का दामन छोड़ना नहीं चाहते। चाहे सामने कितनी भी परेशानियां क्यों ना आए जाए पर एक किसान अपनी फसल को अपने बच्चे की तरह पालता पोषता है। आजकल कृषि को लेकर कई स्टार्टअप शुरू किए जा रहे हैं और तो और नौजवान नौकरियां छोड़ कृषि में हाथ आजमा रहे हैं और सफलता भी पा रहे हैं। वही जिस कहानी को हम आपके सामने परोसने जा रहे हैं वह मेघालय के एक किसान की कहानी है, जिसने काली मिर्च की खेती करके देशभर में अपना नाम बनाया है। ये किसान न सिर्फ साल में लाखों की कमाई कर रहा है, बल्कि इस किसान को केंद्र सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया है।

नानादर ने जैविक खेती का सहारा लेकर किए कीर्तिमान स्थापित

दरअसल मेघालय देश का एक ऐसा राज्य है जहां कृषि को लेकर लोग नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। इस राज्य में मसाले और जड़ी बूटी की खेती बड़ी फलती और फूलती है और किसान इससे अच्छी खासी कमाई भी करता है। मेघालय के एक किसान नानादर बी मारक ने जैविक तरीके से काली मिर्च की खेती करके कृषि के क्षेत्र में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिख दिया है। इतना ही नहीं किसान नानादर बी मारक को सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। बता दें कि किसान नानादर बी मारक पश्चिम गारो हिल्स की पहाड़ियों में निवास करते हैं और वह अपने घर के करीब ही काली मिर्च की खेती करते हैं। जब भी लोग उस इलाके से गुजरते हैं तो उन्हें काली मिर्च की खुशबू मिलती है।

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10 हजार रुपए से शुरु की थी काली मिर्च की खेती

बता दें कि साल 1980 में नानादर बी मारक को अपनी शादी में ससुराल की ओर से 5 हेक्टेयर जमीन विरासत में मिली थी, जिसमें नानादर बी मारक द्वारा लगभग 3 हजार 400 काली मिर्च के पेड़ लगाए गए थे। किसान द्वारा सिर्फ 10 हजार रुपए की लागत से खेती की शुरुआत की गई थी, जिसमें उनके द्वारा 10,000 पेड़ लगाए गए थे। जैसे-जैसे साल बीतने लग गए वैसे-वैसे नानादर मारक ने काली मिर्च के पेड़ों की संख्या बढ़ा दी। जिस वक्त नानादर मारक ने किसानी में अपना हाथ आजमाना शुरू किया उस वक्त वहां के किसान हानिकारक पेस्टिसाइड का इस्तेमाल करके अपने किसानी में चार चांद लगाते थे, वहीं बाकि किसानों द्वारा किए जा रहे प्रयोग कर दरकिनार करते हुए नानादर मारक द्वारा काली मिर्च की खेती जैविक तौर तरीके से की गई ।

नानादर ने पेश की किसानों के लिए मिसाल

नानादर द्वारा ना सिर्फ अपनी खेती का ध्यान दिया गया, वहीं इन्होंने पर्यावरण को भी किसी तरह से कोई हानि नहीं पहुंचाई। दरअसल जिस जगह नानादर रहते हैं वह पूरा इलाका पहाड़ी और जंगली है। अपनी खेती के दौरान नानादर द्वारा ना ही कोई पेड़ काटा गया और ना ही पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचाया गया। वहीं नानादर के इस कार्य में उन्हें बागवानी विभाग और राज्य कृषि द्वारा पूरी मदद दी गई। वहीं नानादर ने ना सिर्फ अपनी खेती पर ध्यान दिया गया बल्कि उन्होंने जिले के अन्य किसानों को भी खेती में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और उनकी मदद की। गौरतलब है कि नानादर बी मारक की काली मिर्च की मांग सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में है। नानादर द्वारा मेघालय में की गई इस काली मिर्च की खेती ने अन्य किसानों के लिए एक मिसाल पेश की है।

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सरकार ने भी नानादर की मेहनत और लगन की तारीफ करते हुए किया उन्हें पद्मश्री से सम्मानित

बता दें कि साल 2019 में मेघालय के किसान नानादर द्वारा 19 लाख रुपए की काली मिर्च का उत्पादन किया गया था और उसके बाद से ही उनके कमाई के ग्राफ में आए दिन बढ़ोतरी देखी जा रही है। नानादर बी मारक के द्वारा दिए गए कृषि क्षेत्र में योगदान के चलते भारत सरकार द्वारा उनकी लगन और मेहनत की तारीफ करते हुए इस साल 72 वे गणतंत्र दिवस के मौके पर नानादर मारक को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नानादर को जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए और जैविक खेती को लेकर अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए इस अवार्ड से नवाजा गया है।

कुछ इस तरीके से नानादर करते है काली मिर्च की खेती, जो दे रही उन्हें लाखों का फायदा

बता दें कि 8-8 फीट की दूरी पर नानादर द्वारा काली मिर्च के पौधे लगाए गए हैं। 8 फीट की दूरी पर पौधों को इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इन्हें बढ़ने की अच्छी जगह मिल सके। वहीं काली मिर्च की फलियों को पेड़ से तोड़ने के बाद उसे सुखाया जाता है। इन काली मिर्च को तोड़ने से लेकर सुखाने तक काफी सावधानी भी बरती जाती है। पहले तो काली मिर्च के दाने को निकालने के लिए इसे पानी में डुबाया जाता है और उसके बाद उसे सुखाया जाता है। पानी में डुबाने से और उसके बाद सुखाने से काली मिर्च को अच्छा रंग मिलता है। हर पौधे में करीब 10 से 20 किलो तक का गाय के गोबर से बना खाद और वर्मी कंपोस्ट डाला जाता है, जिससे पौधों को अच्छा पोषण मिल सके। वहीं फली तोड़ने के लिए थ्रेसिंग मशीन का उपयोग किया जाता है, जिससे पौधे से फली तोड़ने का काम आसानी से और जल्दी हो सके। पौधे से दाने तोड़ते वक्त फली में करीब 70 फ़ीसदी नमी होती है, जिसके बाद उसे अच्छे से सुखाया जाता है। क्योंकि अगर नमी ज्यादा हो जाती है तो उससे काली मिर्च के दाने खराब हो जाते हैं।

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