फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ तो आपने देखी ही होगी, लेकिन आज हम आपको ‘गैंग्स ऑफ़ पूर्वांचल’ की कहानी बताने जा रहे हैं। बताने जा रहे हैं एक क्रिकेटर से गैंगस्टर बनने की कहानी। दरअसल, उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा यानी पूर्वांचल, यूं तो पूर्वांचल से कई नेता आए लेकिन एक ऐसा भी नेता इस क्षेत्र से आता है जो अपराध की दुनिया से राजनीति में आकर मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) पूर्वांचल का रॉबिनहुड बन गया। उस बाहुबली नेता का नाम है मुख्तार अंसारी। प्रदेश के माफिया नेताओं में मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) का नाम पहले पायदान पर माना जाता है। मुख्तार अंसारी ने जुर्म की दुनिया में 1980 के दशक में पहली दस्तक दी।
पूर्वांचल में गैंगवार की शुरुआत (Mukhtar Ansari News)
दरअसल, 1980 के दशक में जब सरकार ने पिछड़े हुए पूर्वांचल के विकास के लिए कई योजनाएं शुरु की तो इसके साथ ही पूर्वांचल में वर्चस्व की लड़ाई भी शुरू हो गई। तब पूर्वांचल में लोगों के जबरन जमीन कब्जा करने को लेकर दो गैंग उभर रहा था। ये बात 1980 की है तब सैदपुर में एक प्लॉट को हथियान के लिए साहिब सिंह के गैंग के साथ झगड़ा हुआ। इसके बाद से ही पूर्वांचल में हिंसक झड़प की शुरुआत हुई। इसके बाद बृजेश सिंह ने साहिब सिंह गैंग से अलग हो कर अपना गैंग बना लिया। फिर 1990 में गाजीपुर के तमाम सरकारी ठेकों पर ब्रजेश सिंह ने कब्जा करना शुरू कर दिया। यही बात मुख्तार अंसारी को खलने लगी और सरकारी ठेकों में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए बृजेश सिंह के गैंग से सामना हुआ। यही से इन दोनों गैंग में दुश्मनी की शुरुआत हुई।
रईस और इज्जतदार घराने से ताल्लुक
गाजीपुर जिले के यूसूफपुर में जन्में मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) हालांकि बेहद रईस और इज्जतदार घराने से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन मुख्तार अंसारी बाहुबली बन गए। ऐसा बाहुबली कि पूरे पूर्वांचल में इनके नाम की अब भी तूती बोलती है। कुछ लोग इन्हें माफिया तो कुछ इन्हें रॉबिनहुड भी मानते हैं। मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) ने अपनी शुरूआती पढ़ाई गाजीपुर के राजकीय इंटर कॉलेज और पीजी कॉलेज से की है। कहते हैं कि मुख्तार अंसारी एक बेहतरीन क्रिकेटर हुआ करते थे। कई लोग मानते हैं कि अगर मुख्तार अंसारी बाहुबली न होते तो शायद बेहतरीन बॉलर के रूप में भारतीय टीम के लिए खेल रहे होते।
अपराध की दुनिया में कदम
मुख्तार अंसारी यूं तो 1980 के शुरुआत में ही अपराध की दुनिया में कदम रख लिया था लेकिन 1988 उनका नाम पहली बार किसी हत्या में आया था। हालांकि, पुलिस के पास कोई ठोस सबूत ना होने के कारण उन्हें तब कुछ नहीं हुआ मगर इस मामले के बाद पूर्वांचल समेत पूरे यूपी में वो चर्चा में आ गए थे। मुख्तार अंसारी के लिए 1990 का दशक बेहद खास रहा। यहीं से मुख्तार अंसारी की राजनीति में एंट्री होती है और पूरे पूर्वांचल में एक नाम खुलकर सामने आता है, वह नाम था मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari)। कभी निर्दलीय तो कभी एसपी का साथ तो कभी बीएसपी, पार्टियां बदलने के बावजूद मुख्तार का सियासी रसूख कायम रहा और करीब साल 2010 तक पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर के पॉलिटिक्स पर पूरी तरह हावी थे।
राजनीति की मुख्यधारा में पहला कदम
साल 1995 का दौर जब पहली बार मुख्यधारा की राजनीति में मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) की एंट्री होती है। 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए। अब बाहुबली होने के साथ ही मुख्तार अंसारी के पास राजनीतिक रसूख भी था। इसका फायदा उठाते हुए उन्होंने बृजेश सिंह की सत्ता हिलाना शुरू कर दिया। उधर, दूसरी तरफ मुख्तार के गैंग के लोग भी बृजेश सिंह के पीछे पड़ गए थे। साल 2002 तक दोनों गैंग का पूरे पूर्वांचल पर वर्चस्व हो गया था। अब पूर्वांचल के सारे ठेके या तो इन दोनों बाहुबलियों को मिलने लगे या फिर इनके गुर्गों को ही मिलते थे। जिसके कारण आए दिन दोनों गैंग के बीच गैंगवार होते थे। इसी दौरान पूर्वांचल में एक सुबह अचानक अखबारों में खबर आई कि मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के साथ गैंगवार में माफिया बृजेश सिंह की मौत हो गई। जिसके बाद पूर्वांचल में एक ही माफिया बचा जो मुख्तार अंसारी था। अब पूरे पूर्वांचल पर मुख्तार का एक छत्र राज हो गया था। धीरे-धीरे बृजेश सिंह के सारे करीबी इस डर से अंडरग्राउंड हो रहे थे कि कही वो भी ना मारे जाए। लेकिन कुछ वक्त बाद बृजेश सिंह के जिंदा होने की खबर आती है और फिर से दोनों गैंग्स के बीच झगड़ा शुरू होता है। तब शुरू हुए वर्चस्व की लड़ाई आज भी दोनों बाहुबलियों के बीच जारी है।