Rheumatoid Arthritis Women joint pain

Rheumatoid Arthritis: जानिए, महिलाओं को क्यों होता है रुमेटॉयड अर्थराइटिस का ज्यादा खतरा

स्वास्थ्य

वैसे तो आज-कल कमर या जोड़ों का दर्द हर किसी के जिंदगी के लिए आम बात है। खास कर 35 से 55 साल की उम्र में ज्यादातर लोगों को कमर दर्द का अनुभव होता है। लेकिन एक स्टडी की मानें तो औरतें, पुरुषों की तुलना कमर या यूं कहे कि जोड़ों के दर्द से ज्यादा परेशान रहती हैं। औरतों को जोड़ों के दर्द या आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) का खतरा आदमियों के मुकाबले कहीं ज्यादा होता है। वजह है हमारे हॉर्मोन, जोड़ों के दर्द के लिए भी कहीं ना कहीं ये हॉर्मोन ही जिम्मेदार है तो चलिए आज हम आपको समझने की कोशिश करते हैं जोड़ों के दर्द के बारे में।

जरूरी नहीं कि जोड़ों में हर दर्द आर्थराइटिस ही हो, लेकिन अक्सर ये आर्थराइटिस की ओर इशारा करता है। इसे अर्ली सिंड्रोम भी कहते हैं। आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) यानी गठिया कई तरह का होता है, इसकी सौ से भी ज्यादा किस्में हैं लेकिन सबसे ज्यादा कॉमन है ऑस्टियो आर्थराइटिस और रुमेटॉयड आर्थराइटिस जिसे आरए भी कहते हैं। कई रिसर्च में देखा गया है कि रुमेटॉयड आर्थराइटिस का खतरा महिलाओं को पुरुषों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होता है। यानी अगर मेल फीमेल रेश्यो की बात की जाए तो ये थ्री इज टू वन है।

आखिर रुमेटॉयड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) होता क्या है?

रुमेटॉयड अर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) सूजन और दर्द से संबंधित बीमारी है, इसमे न सिर्फ जोड़ों पर असर पड़ता है बल्कि खून की धमनियों पर भी इससे बुरा प्रभाव होता है। इसमें हाथ-पैर की उगलियां सूजने लगती है, जोड़ों में दर्द होने लगता है, थकावट महसूस होने लगती है। आदमी अक्सर इसे औरतों की किचकिच समझने लगते हैं और औरतें अपनी सेहत से जुड़ी बाकी की चीजों की तरह इसे भी नजरअंदाज कर देती तो नजरअंदाज मत कीजिए। अब जोड़ों के दर्द को समझने से पहले ये समझ लेते है कि ये जोड़े यानी जॉइंट्स होते क्या हैं।

जोड़े यानी जॉइंट्स क्या होते  हैं ?

दरअसल, सिर से लेकर पैर तक हमारा शरीर हड्डियों की बदौलत टिका है। हड्डियां हमारे शरीर के अंगों को हिफाजत से रखने का काम करती हैं। एक वयस्क के शरीर में कुल 206 हड्डियां और बत्तीस दांत होते हैं। सबसे लंबी हड्डी होती है जांघ की जिसे फीमर (Femur) भी कहते हैं। ये हमारे शरीर की सबसे मजबूत हड्डियों में से एक है। ये शरीर के भार से 30 गुना तक का वजन उठा सकती है। ये हड्डियां जहां एक दूसरे से जुड़ती हैं उन्हें जॉइंट कहते हैं। बॉल और जॉइंट की वजह से हड्डियां अलग-अलग दिशाओं में घूम पाती हैं। वक्त के साथ ही जॉइंट्स खराब होने लगते हैं। इसी कारण जोड़ों में दर्द होता है लेकिन ये जॉइंट न होते तो शायद हम चल-फिर भी नहीं सकते थे। हमारे चलने-फिरने के लिए, हमारी हर मूवमेंट के लिए ये जॉइंट जरूरी होते हैं। अगर हमारी उंगलियों की हड्डियों में जो जॉइंट है वो ठीक से काम ना करें तो हम किसी चीज को ठीक से पकड़ ही नहीं सकते।

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हमारे शरीर के अंदर एक इम्यून सिस्टम होता है। कोरोना की वजह से ये शब्द इम्यूनिटी (Immunity) इम्यून सिस्टम (Immune System) आपने हजारों बार सुना होगा। दरअसल, होता ये है कि जब कोई बैक्टीरिया या वायरस अटैक हमारे शरीर पर अटैक करता है तो हमारा इम्यून सिस्टम उससे लड़ता है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि हमारा इम्यून सिस्टम जरूरत से ज्यादा काम करने लगता है। इतना कि हमारे शरीर में मौजूद कुछ जरूरी चीजों को भी ये खतरा समझने लगता है और उसी पर अटैक कर देता है। इसे कहते हैं ‘ऑटो इम्यून डिजीज’ रुमेटॉयड आर्थराइटिस  (Rheumatoid Arthritis) भी एक तरह की ऑटो इम्यून बीमारी है। इसमें होता ये है कि हमारा जो इम्यून सिस्टम है वो जॉइंट्स के आसपास मौजूद लाइनिंग पर अटैक करता है। खुद को बचाने के लिए फूलने लगती है। इसी से स्वेलिंग होती है स्वेलिंग जितनी बढ़ती रहती है अटैक उतना ज्यादा होता रहता है। इस तरह से जॉइंट्स खराब होने लग जाते हैं और हद तो तब हो जाती है, जब कई बार हड्डी का आकार तक बदल जाता है। अब सवाल है कि इससे बचने के लिए आखिर क्या करें। कैल्शियम हड्डियों का सबसे जरूरी हिस्सा है। कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा हमें मैग्नीशियम और विटमिन डी की भी जरूरत होती है। न्यूट्रिशन के साथ-साथ हड्डियों की सेहत के लिए एक्सरसाइज भी अहम है। इससे बोन डेंसिटी सही बनी रहती है।

इसके अलावा अगर आप अच्छी नींद लें और वजन पर काबू रखें तो लंबे वक्त तक आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) के खतरे को टाल सकते हैं। लेकिन जैसा कि हमने पहले कहा महिलाओं को इसका खतरा पुरुषों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होता है। कुछ महिलाओं को ये प्रेग्नेंसी में शुरू हो जाता है तो बहुतों को मेनोपॉज के दौरान और दोनों ही मामलों में हॉर्मोन ऊपर नीचे हो रहे होते हैं। इसके अलावा और भी कई कारण हैं जैसे कि औरतों का इम्यून सिस्टम पुरूषों के मुकाबले ज्यादा एक्टिव होता है। यही वजह है कि ना केवल आर्थराइटिस बल्कि औरतों को अस्थमा और एलर्जी भी आदमियों से ज्यादा होती है। इसके अलावा औरतों के शरीर में फैट ज्यादा होता है खासकर हिप्स के आसपास। हम अक्सर कहते हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान औरतों का शरीर बदल जाता है। ये बदलाव इसीलिए होता है ताकि बच्चे के लिए जगह बन सके और जब ये जगह बनती है तो हिप्स फेरते है लेकिन पुरूषों के साथ ऐसा नहीं होता। हिप्स फैलने के कारण दबाव घुटनों पर पड़ता है और यही कारण है कि महिलाओं में आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) का खतरा ज्यादा होता है।

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